सरकार ने 1 अप्रैल से लेबर कोड नियमों को लागू करने के फैसला टाल दिया है। राज्य सरकारों के नियमों को अभी फाइनल नहीं किया जिसके कारण इन्हें टाला गया है। लेबर कोड टालने का फैसला इसलिए भी लिया गया ताकि कंपनियों को सैलरी स्ट्रक्चर और एचआर पॉलिसी बदलने के लिए समय मिल जाए क्योंकि इन नियमों के कंपनियों की कर्मचारी लागत बढ़ जाएगी।
सीनियर श्रम मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक लेबर कोड को कुछ समय के लिए टाल दिया गया है। सीनियर श्रम मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक लेबर कोड को कुछ समय के लिए टाल दिया गया है। सरकार चाहती है कि केंद्र के साथ कम से कम कुछ औद्योगिक राज्य लेबर कोड के नियमों को नोटिफाई करें। ताकि, कोई भी कानूनी परेशानी न हो।
श्रम मंत्रालय लेबर कोड के चार नियमों के साथ तैयार हैं। जब कुछ राज्य इन्हें लागू करने के लिए तैयार हो जाएंगे, तो इन्हें नोटिफाई कर देगी। जम्मू और कश्मीर ने नियमों को नोटिफाई किया है, जबकि उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश ने दो कोड्स को ड्राफ्ट किया है। कर्नाटक एक कोड को मानने के लिए तैयार है।
लेबर कोड नियमों के टलने से भारतीय उद्योग जगत को राहत मिली है क्योंकि कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच औद्योगिक राज्यों ने आशंका जताई थी। कोरोना के बढ़ते मामलों से इकोनॉमिक रिकवरी पर असर पड़ सकता और अगर आगे ऐसे ही मामले बढ़ते रहे तो हालात और खराब हो सकते हैं।
श्रम मंत्रालय ने 29 लेबर कानूनों का एकीकरण कर चार कर दिया है। ताकि, पेपर वर्क कम हो, कारोबार करना आसान हो, वर्कर्स को रखना और निकालना आसान हो और काम के घंटों में लचीलापन आ सके। पिछले साल संसद में मजदूरी संहिता विधेयक (कोड ऑन वेजेज बिल) पास किए गए थे।
लेबर कोड के नियम
नए ड्राफ्ट रूल के अनुसार, मूल वेतन कुल वेतन का 50% या अधिक होना चाहिए। इससे ज्यादातर कर्मचारियों का वेतन संरचना बदलेगा, क्योंकि वेतन का गैर-भत्ते वाला हिस्सा आमतौर पर कुल सैलेरी के 50 फीसदी से कम होता है। वहीं कुल वेतन में भत्तों का हिस्सा और भी अधिक हो जाता है। मूल वेतन बढ़ने से आपका पीएफ भी बढ़ेगा। पीएफ मूल वेतन पर आधारित होता है। मूल वेतन बढ़ने से पीएफ बढ़ेगा, जिसका मतलब है कि टेक-होम या हाथ में आने वाला वेतन में कटौती होगी।