वर्ष में नवरात्रि दो बार आते हैं। चैत्र मास में वासंतिक नवरात्रि और आश्विन मास में शारदीय नवरात्रि होते हैं। यह दोनों नवरात्रि मौसम परिवर्तन की संधियों में होते हैं। शारदीय नवरात्र आने से शीत ऋतु का आगमन हो जाता है और वासंती नवरात्रों के बाद गर्मी का मौसम आरंभ हो जाता है। इन दोनों नवरात्रि के अलावा दो गुप्त नवरात्रि होती हैं। ये हैं आषाढ़ मास और माघ मास में। इस वर्ष माघ मास की गुप्त नवरात्रि 12 फरवरी दिन शुक्रवार से 21 फरवरी दिन रविवार तक रहेंगी। गुप्त नवरात्रि में साधक गण विशेष रुप से तांत्रिक लोग महासरस्वती, महाकाली और महालक्ष्मी की विशेष पूजा करते हैं। 10 महाविद्याओं की स्वामिनी मां कालिका, तारा, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी इन 10 माताओं की विशेष पूजा होती है। गुप्त नवरात्रि में इन माताओं की पूजा करने से व्यक्ति को सिद्धि मिलती है और वह समाज में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति बन सकता है।
माघ मास के नवरात्रि में घटस्थापना का शुभ मुहूर्त : प्रातः 8:34 से 10:00 बजे तक। मध्यान्ह अभिजीत मुहूर्त 11:24 से 12:36 बजे तक कलश स्थापना के बहुत शुभ मुहूर्त हैं। मंत्र सिद्धि के इच्छुक गृहस्थी लोग एवं मां भगवती के साधक नवरात्रों में उपरोक्त 10 महाविद्याओं की साधना करके सिद्धि प्राप्त कर सकते हैं।
कलश स्थापना के नियम: प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर माता की पूजा के लिए 2 चौकियां सजाएं। बाएं हाथ की चौकी पर चावल अथवा रोली से अष्टदल बनाकर कलश की स्थापना करें। कलश के नीचे अन्न (गेहूं या चावल) रखने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। ऐसी मान्यता है कि कोई भी पूजा करने से पूर्व कलश की स्थापना घर में अन्न और जल की पूर्णता प्रदान करने वाली होती है। मिट्टी अथवा तांबे के कलश सबसे पहले थोड़ा गंगाजल डालें। उसमें चावल,सुपारी बताशा या मिष्ठान और सिक्का डाल दें। कलश पर कलावा लपेटे,कलश के मुंह पर आम या अशोक के पत्ते रखें। उसके ऊपर अंगोछा से लिपटा हुआ नारियल रखें और वरुण भगवान का ध्यान करते हुए प्रार्थना करें कि मेरा घर और जल से हमेशा परिपूर्ण रहे। इस प्रकार कलश की स्थापना सामान्य लोग भी कर सकते हैं। इसके पश्चात दाहिने हाथ की ओर दूसरी चौकी पर दुर्गा मां की फोटो रखें और घी का दिया जलाएं। यदि दुर्गा सप्तशती के पाठ करने हैं तो स्वस्तिवाचन, गणेश पूजन ,नवग्रह आदि की पूजा करने के पश्चात दुर्गा मां का पाठ आरंभ करें।