नई दिल्ली । ईरान के सर्वोच्च नेता के बाद दूसरा स्थान रखने वाले कुद्स फोर्स के प्रमुख जनरल कासिम सुलेमानी की अमेरिकी ड्रोन हमले में मौत के बाद से दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति है। मामला इतना गंभीर हो गया है कि अमेरिका ने अपने नागरिकों से तुरंत इराक छोड़ने को कहा है। दोनों देशों के रिश्ते बेहद खराब दौर से पहले से ही गुजर रहे हैं। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने 2002 में ईरान के साथ इराक और उत्तरी कोरिया को शैतानों की धुरी कहा था। डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में रिश्ते और बदतर हो गए।
1953 में अमेरिकी गुप्तचर एजेंसी सीआइए ने ब्रिटेन के साथ मिलकर ईरान के निर्वाचित प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसादेक को अपदस्थ करा दिया। इसका मुख्य कारण तेल था। दरअसल धर्मनिरपेक्ष प्रधानमंत्री मोसादेक तेल उद्योग का राष्ट्रीयकरण करना चाहते थे। इसी समय से दोनों देशों के बीच दुश्मनी की बीज पड़ी।
अमेरिकी समर्थन प्राप्त ईरान के शाहरजा शाह पहलवी को व्यापक प्रदर्शन के बाद 1979 में देश छोड़ना पड़ा। उनपर पश्चिमी प्रभाव में आने का आरोप लगाया गया था। इसके बाद इस्लामिक नेता अयातुल्ला खामेनेई वनवास से लौटे। उन्होंने सता संभाली। जनमत संग्रह कर उसी वर्ष एक अप्रैल को देश को इस्लामिक गणतंत्र घोषित कर दिया गया।
444 दिनों तक बंधक रहे 52 अमेरिकी
इस क्रांति के बाद प्रदर्शनकारियों ने नवंबर में तेहरान स्थित अमेरिकी दूतावास को घेर लिया। इसके बाद 444 दिनों तक 52 अमेरिकियों को बंधक बनाकर रखा। जब अमेरिका में रोनाल्ड रीगन राष्ट्रपति बने तब जनवरी 81 में उन्हें मुक्त किया गया।
थोड़े सहज हुए संबंध
2013 के सितंबर में ईरान के उदारवादी नेता हसन रुहानी से अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की फोन पर वार्ता हुई। यह 30 वर्षों में पहली उच्चस्तरीय बातचीत थी। लंबी कूटनीतिक क्रियाओं के बाद 2015 में ईरान ने अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, रूस और जर्मनी के साथ परमाणु समझौता किया। इसके तहत वह संवेदनशील परमाणु कार्यक्रमों को सीमित करने और अंतरराष्ट्रीय निरीक्षकों को इस शर्त पर आने की अनुमति दी कि वे आर्थिक प्रतिबंध हटा लेंगे।
मई 2018 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने समझौता रद्द कर दिया। इसके बाद ईरान और अमेरिकी रिश्ते में कड़वाहट आ गई। अमेरिका ने खाड़ी देश में अपने लड़ाकू विमान और सैनिक तैनात कर दिए। मई और जून 2019 में अोमान की खाड़ी में छह तेल टैंकरों को उड़ा दिया गया। अमेरिका ने इसके लिए ईरान को जिम्मेदार ठहराया। इसके बाद 20 जून को ईरानी सेना ने अमेरिकी सैन्य ड्रोन को मार किया।
तनाव के बीच ही अमेरिकी युद्धपोत ने ईरान के एक यात्री जहाज को 3 जुलाई 1988 को उड़ा दिया। उसमें 290 यात्री मारे गए थे। उनमें अधिकांश मक्का जाने वाले ईरानी तीर्थयात्री थे। हालांकि अमेरिका का कहना था कि उसने गलती से एयरबस ए 300 को लड़ाकू जेट समझ लिया था।
कहा जाता है कि ईरान ने जो परमाणु कार्यक्रम शुरू किया, वह 2002 तक छिपा रहा। लेकिन ईरानी प्रतिपक्ष ग्रुप के रहस्योद्घाटन के बाद पश्चिमी देशों की नजरें टेढ़ी हुईं। संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और यूरोपीय संघ ने ईरान के कट्टरवादी राष्ट्रपति अहमदीजेनाद सरकार पर कई प्रतिबंध लगाए। इस कारण ईरानी मुद्रा दो वर्षों में दो तिहाई तक गिर गई।