सरकारी स्कूल में टीचर बनने के लिए बेरोजगारों को आठ साल तक कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ गई। सर्वोच्च न्यायालय में अवमानना मामले में गर्दन फंसी तो उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा विभाग के अफसरों ने 22 अक्तूबर को ऐसे 12 अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र देने के आदेश जारी किए हैं। यह मामला 30 नवंबर 2011 को शुरू हुई 72,825 प्रशिक्षु शिक्षक भर्ती से जुड़ा है।
तत्कालीन बसपा सरकार में भर्ती का विज्ञापन जारी हुआ था। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) के दिशानिर्देश के अनुसार परास्नातक के आधार पर बीएड करने वाले अभ्यर्थियों ने भी आवेदन किया था। ये वे अभ्यर्थी थे जिनके स्नातक में 50 प्रतिशत से कम अंक थे लेकिन परास्नातक में 50 प्रतिशत से अधिक अंक होने पर बीएड में दाखिला मिला था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अन्य अभ्यर्थियों को तो नौकरी मिलती गई और 25 जुलाई 2017 को अंतिम फैसला भी आया। बीएड करने वाले अभ्यर्थियों को विभाग ने नौकरी नहीं दी। गोरखपुर के नवीन श्रीवास्तव ने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर कर दी।
इस याचिका की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 27 फरवरी 2019 को चार सप्ताह में पीजी के आधार पर बीएड अभ्यर्थियों के चयन का आदेश दिया। 27 सितंबर को सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने इन अभ्यर्थियों को तीन सप्ताह में नियुक्ति देने का राज्य सरकार को अंतिम अवसर देते हुए सुनवाई की अगली तारीख 25 अक्तूबर तय की है। सचिव बेसिक शिक्षा परिषद रूबी सिंह ने 12 अभ्यर्थियों को 22 अक्तूबर को नियुक्ति पत्र जारी करने के आदेश दिए हैं। नवीन श्रीवास्तव व शिव कुमार नाथ तिवारी को संत कबीर नगर, दीप्तिमा त्रिपाठी को प्रयागराज, रंजना पांडेय व जन ज्ञान को बलरामपुर, अमरनाथ शर्मा व संतोष त्रिपाठी को बहराइच, हरिशंकर चौधरी को सिद्धार्थनगर, नीलमणि श्रीवास्तव को कुशीनगर, सरोज मिश्रा को हरदोई, चन्द्र प्रकाश को पीलीभीत व अनिल दीक्षित को लखीमपुर खीरी में नियुक्ति देने के आदेश हुए हैं।
मेहनत रंग लाई ’ 72,825 शिक्षक भर्ती में पीजी के आधार पर बीएड करने वालों का मामला ’ 16 अक्तूबर को सचिव बेसिक शिक्षा परिषद ने दिया था आदेश ’ सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 12 अभ्यर्थियों को मिली नियुक्ति