रायबरेली। उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग ने क्षेत्र की संगिनी और आशा बहुओं को सौंपा कार्यभार 14 दिन के अंदर दूसरे राज्यों व शहरों से आए लोगों एवं बीमार व्यक्ति और ऐसे परिवारों की सूची आशा कार्यकत्री और संगिनी के माध्यम से ब्लॉक कम्युनिटी प्रोसेस मैनेजर (बीसीपीएम) को देने का निर्देश दिया गया है। क्षेत्र में सर्वे करके संदिग्ध परिवार वो व्यक्ति को पहचान कर समय से रिफर कराने का कार्य भी आशा को करना है। 15 दिन के अंदर बाहर से आने और जाने वाले व्यक्ति पर भी नजर रखनी है और इसका कार्यकाल ग्रामीण क्षेत्रों में 8 दिन में और शहरी क्षेत्रों में 16 दिन के अंदर रखा गया है। प्रत्येक आशा पर प्रतिदिन 25 से 30 घर सर्वे करने के लिए निर्धारित किए गए हैं सवाल यह नहीं है कि इनको इस महामारी में लगाया गया है। सवाल यह है कि बिना इनको किसी तैयारी के कोरोना जैसी संक्रमणीत महामारी मैं क्षेत्र में उतार दिया गया जिनको विभाग द्वारा कोई सेफ्टी किट की तो बात छोड़ो हैंड वास सैनिटाइजर मास दस्ताने जैसी छोटी-छोटी सामग्री भी नहीं उपलब्ध कराई गई जिनको वेतन के नाम पर मात्र 22:00 सौ से ₹3000 प्रतिमा ही मिलता है वैसे विभाग ने 500 से 1000 अतिरिक्त देने के लिए कहा है। सवाल यह है कि वैसे भी इनके कार्य की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है रात हो या दिन सुबह या शाम हर वक्त इनको तैयार रहना पड़ता है। अब सवाल यह उठता है कि क्या बाईस सौ से तीन हजार में किसी परिवार का भरण पोषण हो पाता है। आज की महंगाई में लेकिन उससे भी बड़ा सवाल यह है कि संक्रमित महामारी में यह अपने को और अपने परिवार को सुरक्षित रख पाएंगी।