लखनऊ। पति की आयु लम्बी हो इसलिए महिलाओं ने शुक्रवार को वट वृक्ष की पूजा की । महिलायें वट वृक्ष के नीचे जमा हुई और उन्होंने वट सावित्री की पूजा अर्चना की और सौभाग्यवती होने की कामना की। सुबह से ही शहर के मंदिरों में पूजा अर्चना शुरू हो गई थी। स्नान करने के बाद महिलाओं ने सूर्य देवता को जल अर्पित किया। इसके बाद मंदिर में या फिर घर में लगे वट वृक्ष के पास महिलाएं एकत्रित हुईं। सभी ने साथ मिलकर वट वृक्ष को सूत बांधते हुए परिक्रमा की और पति की लम्बी आयु की कामना की। महिलाओं ने वृक्ष को फल, फूल और जल अर्पित किया। ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या तिथि के दिन वट वृक्ष की पूजा का विधान है। इस साल यह 22 मई को मनाया जा रहा है। पूूूजा मेंं सोशल डिस्टनसिंग का खयाल नहीं रखा गया।
शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन वट वृक्ष की पूजा से सौभाग्य एवं स्थायी धन और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। संयोग की बात है कि इसी दिन शनि महाराज का जन्म हुआ है। और सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण की रक्षा की। सावित्री और सत्यवान की कथा से वट वृक्ष का महत्व लोगों को ज्ञात हुआ क्योंकि इसी वृक्ष ने सत्यवान को अपनी शाखाओं और शिराओं से घेरकर जंगली पशुओं से उनकी रक्षा की थी। इसी दिन से जेष्ठ कृष्ण अमावस्या के दिन वट की पूजा का नियम शुरू हुआ। वट सावित्री के दिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए वट वृक्ष की पूजा करती हैं।
वट-सावित्री व्रत पर तिसरी में सुहागिनों ने की वट वृक्ष की पूजा
व्रत के बाद सुहागिनें एक-दूसरे के माथे पर सिंदूर लगाती हुईं। जानकारी के अनुसार वट-सावित्री का व्रत हिंदू धर्म में कई मायनों में खास होता है। इससे सौभाग्य, संतान और पति की लंबी आयु की कामना के लिए किया जाता है। सुहागिन महिलाएं 16 श्रृंगार कर बरगद के पेड़ के चारों ओर फेरे लगा कर पति की लंबी आयु की प्रार्थना करती हैं। इस दिन वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा करने का प्रधान है। इस व्रत को वट सावित्री के नाम से इसीलिए पुकारा जाता है क्योंकि सावित्री-सत्यवान की कथा का विधान है।
पारंपरिक श्रद्धा और उल्लास के साथ हुई वट सावित्री पूजा
वट सावित्री का व्रत सुहागिनों ने बड़ी श्रद्धा एवं उल्लास के साथ मनाया। अहले सुबह सुहागिनें स्नान आदि से निपट कर रंग-बिरंगे वस्त्र धारण कर पूजा की थाली लेकर वट वृक्ष की पूजा करने गई। वट वृक्ष की पूजा कर उसे रक्षा सूत्र से बांध अचल सुहाग की कामना की। सुहागिनों ने फल एवं सिंगार प्रसाधनों से पूजा की और पारंपरिक गीत गाकर परिक्रमा की। मान्यता है कि पूजा से सुहागिनों के सुहाग अचल रहते हैं।