हरियाणा में सत्ता की नई धुरी तय करने वाले जाट एकाएक खुद को असहज महसूस करने लगे हैं। इनके असहज होने की वजह जननायक जनता पार्टी (जजपा) नेता दुष्यंत चौटाला का भाजपा सरकार में डिप्टी सीएम बनना है। चुनावी नतीजे बताते हैं कि जाटों ने प्रदेश में भाजपा के खिलाफ जजपा और कांग्रेस को वोट दिया था। अब दुष्यंत चौटाला ने ही अल्पमत वाली भाजपा को अपना समर्थन देकर न केवल उसकी सरकार बनवा दी, बल्कि खुद भी उसमें शामिल हो गए। दुष्यंत का यह क़दम जाटों को काफी अखर रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जाट अब पूरी तरह से कांग्रेस में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ जा सकते हैं। उधर शुक्रवार को जैसे ही दुष्यंत के भाजपा सरकार में शामिल होने की ख़बर आई, सोशल मीडिया पर जजपा नेता को लेकर विरोधी कॉमेंट्स की बाढ़ आ गई।
दुष्यंत चौटाला के निशाने पर रही भाजपा…
राजनीतिक विश्लेषक और शोधार्थी रवींद्र कुमार का कहना है, किसी ने ठीक ही कहा है कि राजनीति में कोई भी न तो किसी का स्थाई दोस्त होता है और न ही दुश्मन। विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान दुष्यंत चौटाला और उनकी पार्टी ने भाजपा के ख़िलाफ जमकर भड़ास निकाली थी। दुष्यंत की मां नैना चौटाला, जो कि खुद बाढड़ा सीट से चुनाव जीती हैं, उन्होंने प्रचार के दौरान मीडिया से कहा था कि हम भाजपा के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे। इसकी मैं गारंटी देती हूं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि हरियाणा में अमित शाह की जो रैलियां रद्द हुई हैं, वे दुष्यंत के डर से हुई हैं। हालांकि इससे पहले उन्होंने ये भी कहा था कि राजनीति में तय नियम नहीं होता।
चुनावी नतीजे आने के बाद बहुत सी बातें तय होती हैं। रवींद्र कुमार के मुताबिक, इस चुनाव में जाट समुदाय पूरी तरह भाजपा के ख़िलाफ था। यह अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि भाजपा सरकार में मंत्री रहे कैप्टन अभिमन्यु, ओमप्रकाश धनखड़ और हरियाणा के भाजपा अध्यक्ष सुभाष बराला जाट बाहुल्य सीटों पर चुनाव हार गए। जाट समुदाय के लोग यह मन बनाकर बैठे थे कि चाहे जो हो, लेकिन वे भाजपा को वोट नहीं डालेंगे। जिन सीटों पर भाजपा ने गैर-जाट उम्मीदवार खड़े किए, वहां जाटों ने दूसरे नंबर के उम्मीदवार जो भले ही कांग्रेस या जजपा की टिकट पर चुनाव मैदान में थे, उन्हें अपना वोट दे दिया। ऊंचाना कलां सीट पर भाजपा ने पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ. बीरेन्द्र सिंह की पत्नी प्रेमलता को टिकट दिया था। वे 2014 में यहीं से चुनाव जीती थीं। इनके बेटे ब्रजेंद्र सिंह हिसार से लोकसभा सांसद हैं। जाट समुदाय से होने के बावजूद वे चुनाव हार गईं। जाटों ने दुष्यंत चौटाला को अपना वोट दिया था।
अब दुष्यंत की अग्निपरीक्षा
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भले ही दुष्यंत चौटाला भाजपा सरकार में डिप्टी सीएम बनने जा रहे हैं, लेकिन उनकी अग्निपरीक्षा अब शुरू होगी। उनके भाजपा सरकार में शामिल होने से असहज हुए जाट वोटरों को समझाना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं होगा। इस चुनाव में जाट समुदाय के लोग बंटे हुए थे। उन्होंने कांग्रेस और जजपा को अपना वोट दिया था। जैसे रोहतक, सोनीपत और झज्जर, जिसे भूपेंद्र हुड्डा के असर वाली बेल्ट माना जाता है, वहां जाटों ने कांग्रेस उम्मीदवारों को वोट दिया। बाकी जगह पर उन्होंने जजपा को मजबूत करने का काम किया।
पिछले 24 घंटे में सोशल मीडिया पर दुष्यंत के ख़िलाफ जिस तरह जाटों की नाराजगी सामने आई है, उसे देखकर यही लगता है कि जाट दुष्यंत के इस क़दम से बेहद खफा हैं। उनके सामने अब यह एक बड़ी चुनौती होगी कि वे जाटों को कांग्रेस की ओर जाने से रोकने में कितना कामयाब हो पाते हैं। ऐसी हालत में भाजपा का प्रयास रहेगा कि जाट वोट बैंक जजपा और कांग्रेस के बीच बंटता रहे। यदि यह सम्भव होता है तो भाजपा एक बार फिर ग़ैर जाट की राजनीति का कार्ड खेल सकती है। सोशल मीडिया पर चल रही बयानबाजी में कहा जा रहा है कि दुष्यंत ने भाजपा का दामन थामकर बहुत बड़ी गलती की है। आगे चलकर उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
रवींद्र कुमार कहते हैं, चौटाला परिवार 2004 से लेकर अभी तक सत्ता से बाहर है। दुष्यंत के पिता अजय चौटाला तिहाड़ जेल में हैं। इन परिस्थितियों को दूसरे एंगल
से देखें तो दुष्यंत का भाजपा सरकार में शामिल होना, ठीक भी कहा जा सकता है। हालांकि ये तो अब आने वाला वक़्त ही बताएगा कि दुष्यंत ने डिप्टी सीएम का पद लेकर अपनी पार्टी के लिए रेड कार्पेट बिछाया है या फिर कांटों का ताज।