नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका के राष्ट्रपति गोताबाया राजपक्षे (Gotabaya Rajapaksa) और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को चुनाव में उनकी पार्टी की शानदार जीत के लिए बधाई दी है। इसी के साथ उन्होंने दोनों देशों के बीच संबंधों को और अधिक मजबूत होने का भी भरोसा जताया। पीएम मोदी ने राजपक्षे बंधुओं को एक पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने कहा कि वह उनके साथ काम करने को लेकर उत्सुक हैं।
चीन के साथ लगातार जारी तनावपूर्ण संबंधों (India China Faceoff) के बीच भारत को पड़ोसी मुल्क श्रीलंका के साथ आने वाले दिनों में अच्छे तालमेल की उम्मीद है। यही नहीं भारत को ये भी लग रहा कि श्रीलंका में नई सरकार आने के बाद चीन वापसी की तैयारी करेगा। हालांकि, राजपक्षे के विपक्ष रहने के दौरान जिस तरह के तेवर देखने को मिले थे उससे बीजिंग के यहां वापसी की संभावना कम नजर आ रही है।
भारत-श्रीलंका के बीच रिश्ते काफी मजबूत
भारत और श्रीलंका के बीच संबंध पहले से काफी मजबूत हैं, यही वजह है कि भारत ने पड़ोसी देश के साथ कनेक्टिविटी और आवास पर ध्यान देने के साथ ही वहां के लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में भी अहम भूमिका निभाई है। भारतीय अधिकारियों के मुताबिक, 65 अनुदान सहायता परियोजनाओं को पूरा करने के बाद, भारत मौजूदा दौर में 20 और ‘जन-केंद्रित’ परियोजनाओं को लागू करने पर काम कर रहा है।
चीन की नजरें श्रीलंका पर, लगातार चल रहा दांव
दूसरी ओर श्रीलंका के साथ संबंधों के लिए चीन की ओर से भी कवायद की जा रही है। श्रीलंका में चीनी मामलों के प्रभारी हू वेई ने इस हफ्ते ही महिंदा राजपक्षे को राष्ट्रपति शी जिनपिंग के पुराने मित्र के रूप में संबोधित किया, संसदीय चुनावों में उनकी पार्टी की शानदार जीत पर बधाई दिया। महिंदा राजपक्षे को चीन के करीब भी बताया जाता है, उनके भाई गोताबाया राजपक्षे के भी चीन के प्रति झुकाव होने की बात कही जाती रही है। हालांकि, पिछले कुछ समय से हालात बदले नजर आ रहे हैं। जिस तरह से भारत ने श्रीलंका के साथ कई अहम प्रोजेक्ट पर काम किया इससे चीन की श्रीलंका में प्रभाव बढ़ाने की कोशिश की संभावना कम ही नजर आ रही है।
2015 की शुरुआत में महिंदा के राष्ट्रपति के पद से हटने के बाद चीन ने श्रीलंका में मजबूत वापसी की। श्रीलंका पर चीन का करीब 8 बिलियन डॉलर का ऋण और दूसरे आर्थिक संकट से संतुलन बिगड़ने लगा। ऐसे में श्रीलंका की नजरें फिर से मदद के लिए बीजिंग की ओर टिक गईं। महिंद्रा के जाने के महज 15 महीने बाद, चीन ने अपने 1.4 अरब डॉलर के कोलंबो पोर्ट सिटी प्रोजेक्ट को न केवल पुनर्जीवित करने में कामयाबी हासिल की, बल्कि प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर विस्तार का काम भी शुरू कर दिया, जिन्हें आर्थिक रूप से अस्थिर देखा गया।
श्रीलंका को लेकर भारत की ओर से भी पहल
वहीं एक साल बाद, 2017 में, भारत ने राजपक्षे के साथ संबंधों को सुधारने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया था जब मोदी ने कोलंबो की अपनी यात्रा के दौरान महिंद्रा के साथ ‘अनशिड्यूल’ बैठक की थी। 2018 में पीएम मोदी एक बार फिर से राजपक्षे से मिले जब वो भारत के प्राइवेट दौरे पर आए थे। यही नहीं श्रीलंका और भारत के रिश्ते किसकदर मजबूत नजर आ रहे इसका पता इस बात से भी लगता है कि महिंदा के भाई और राष्ट्रपति गोटाबया राजपक्षे ने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत को ही चुना था। अब श्रीलंका में नई सरकार का गठन हो गया है, ऐसे में भारत को पड़ोसी मुल्क के साथ रिश्ते और प्रगाढ़ होने की उम्मीद है।
पीएम मोदी ने द्विपक्षीय संबंध मजबूत होने का जताया भरोसा
गोताबाया राजपक्षे ने बुधवार को 28 सदस्यीय मंत्रिमंडल को शपथ दिलाई। भारतीय उच्चायोग ने इसको लेकर ट्वीट किया, उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री मोदी ने भारत और श्रीलंका के बीच द्विपक्षीय संबंध और मजूबत होने का भरोसा जताया है। उन्होंने कहा कि वह कोविड-19 से प्रभावित दोनों देशों की अर्थव्यवस्था को उबारने समेत कई मुद्दों पर गोताबाया राजपक्षे और महिंदा राजपक्षे के साथ काम करने को लेकर उत्सुक हैं।’