यूपी के गैंगस्टर विकास दुबे एनकाउंटर मामले की जांच पूर्व न्यायाधीश जस्टिस बी एस चौहान की अगुवाई में ही होगी। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें न्यायिक समिति पर सवाल उठाया गया था। आपको बता दे विकास दुबे एनकाउंट के लिए तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया गया है।
मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि कानपुर एनकाउंटर मामले में न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) चौहान की अध्यक्षता वाली न्यायिक समिति द्वारा निष्पक्ष जांच के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय किए गये हैं।
इस मामले की 11 अगस्त को सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा था कि ऐसे कई न्यायाधीश हैं जिनके भाई और पिता सांसद हैं। क्या आप यह कहना चाह रहे हैं कि वे सभी जज पक्षपाती हैं। क्या किसी दल से जुड़े रहना कोई गैर-कानूनी काम है?
मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने याचिकाकर्ता घनश्याम उपाध्याय और उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। उपाध्याय ने एक मीडिया संस्थान में प्रकाशित रिपोर्ट के हवाले से शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश बी एस चौहान की निष्ठा पर इस आधार पर सवाल खड़े किये हैं कि न्यायमूर्ति चौहान के दो-दो रिश्तेदार भारतीय जनता पार्टी के नेता हैं। मामले की सुनवाई के दौरान मेहता ने कहा कि न्यायिक आयोग के प्रमुख न्यायमूर्ति चौहान के खिलाफ वकील घनश्याम उपाध्याय की दलीलें अपमानजनक है।
क्या था मामला
याचिकाकर्ताओं में से एक -वकील घनश्याम उपाध्याय- ने इस बार न्यायमूर्ति चौहान का भारतीय जनता पार्टी से नजदीकी संबंध होने का आरोप लगाकर उन्हें आयोग से हटाने की मांग की है। याचिकाकर्ता का कहना है कि न्यायमूर्ति चौहान के भाई और समधी भाजपा के नेता हैं। यह पार्टी उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ है।
याचिकाकर्ता ने आयोग के दूसरे सदस्य उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक के. एल. गुप्ता का संबंध भी कानपुर जोन के पुलिस महानिरीक्षक मोहित अग्रवाल से होने की बात कही है। कानपुर क्षेत्र में ही विकास दुबे की मुठभेड़ हुई थी। उपाध्याय का कहना है कि आयोग के दोनों सदस्यों की उपस्थिति से निष्पक्ष जांच की संभावना कम नजर आती है, इसलिए आयोग को फिर से गठित करना चाहिए।
गौरतलब है कि उपाध्याय ने पहले भी गुप्ता और हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश शशिकांत अग्रवाल को आयोग से हटाने के लिए याचिका दायर की थी। एक अन्य याचिकाकर्ता अनूप अवस्थी ने भी गुप्ता की आयोग में मौजूदगी पर सवाल उठाये थे और दलीलें दी थीं। दोनों की याचिकाओं को शीर्ष अदालत ने पिछले दिनों खारिज कर दिया था।