वाराणसी। बीते लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्तावक रहे डोम राजा जगदीश चौधरी का मंगलवार की सुबह निधन हो गया। डोम राज परिवार के जगदीश चौधरी के निधन की सूचना मिलने पर त्रिपुरा भैरवी घाट स्थित उनके निवास पर उनके परिजनोंं और परिचितों की जुटान सुबह से ही शुरू हो गई। परिजनों के अनुसार वह कुछ समय से बीमार से और निजी अस्पताल में भर्ती थे।
परिजनों के अनुसार वह कई दिनों से अस्वस्थ्य थे। वह कुछ समय से पैर में घाव से भी पीड़ित थे। रात में अत्यधिक तबीयत खराब होने पर भोर में परिवारीजन सिगरा स्थित निजी चिकित्सक के यहां ले गए जहां उपचार के दौरान उनकी मौत हो गई। जगदीश चौधरी के परिवार में पत्नी रुक्मणी देवी (45 वर्षीय), दो पुत्रियां (19 और 16 वर्ष) और एक पुत्र ओम (14 वर्ष) है। परिजनों के अनुसार पार्थिव शरीर को मुखाग्नि पुत्र ओम ही देगा।
फिलहाल वह डोमराजा परिवार के प्रतिनिधि भी थे। अंतिम डोमराजा के तौर पर स्व. कैलाश चौधरी की पहचान मानी जाती है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनको अपना प्रस्तावक चुना था। शहर की जानी मानी हस्तियों ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है। दूसरी ओर परिजन दोपहर बाद अंतिम संस्कार करने की तैयारियों में जुटे हुए हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डोमराजा के निधन पर सोशल मीडिया में पोस्ट किया है। उन्होंने टवीटर पर लिखा है कि – ‘वाराणसी के डोम राजा जगदीश चौधरी जी के निधन से अत्यंत दुख पहुंचा है। वे काशी की संस्कृति में रचे-बसे थे और वहां की सनातन परंपरा के संवाहक रहे। उन्होंने जीवनपर्यंत सामाजिक समरसता के लिए काम किया। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे और परिजनों को इस पीड़ा को सहने की शक्ति दे।’
26 अप्रैल 2019 को पीएम नरेंद्र मोदी के वाराणसी लोकसभा के लिए नामांकन के दिन सभी की नजरें पीएम के प्रस्तावकोंं पर लगी हुई थीं। इसी में एक नाम जगदीश चौधरी का भी था। जिन्होंनें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रस्तावक बनने के बाद दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि ”इस बात की बहुत खुशी है कि प्रधानमंत्री मोदी का प्रस्तावक बनने का मौका मुझे मिला है। पहली बार किसी नेता या प्रधानमंत्री ने डोम समाज के बारे में सोचा है। डोम समाज दुनिया के इस सबसे पुराने शहर बनारस में सबसे पिछड़ा समाज है, वह पीढ़ियों से मणिकर्णिका घाट पर शवों के दाह संस्कार का काम करता आया है। कोई नेता कभी हमारे बारे में नहीं सोचता है, जिस तरह से प्रधानमंत्री ने मेरे बारे में और दो परिवार समेत पूरे समाज के बारे में सोचा है वह नेक पहल है। हमारा आशीर्वाद है कि वह फिर से प्रधानमंत्री बनें और देश की सेवा करें।”
कभी राजा हरिश्चंद्र तक को खरीदने वाला यह चौधरी परिवार आज भले तंगी के दौर से गुजर रहा हो लेकिन मान प्रतिष्ठा के मामले में नाम (डोमराजा) ही काशी में काफी है। कभी इस परिवार में बग्घी और पालकी भी सवारी के रूप में हुआ करती थी। यह रईसी शान अंतिम डोमराजा स्व. कैलाश चौधरी तक ही सीमित रही। वास्तव में परिवार बढ़ने के साथ शवदाह की पालियां लगातार बंटती चली गईं और बाद में प्रशासन ने अग्निदान शुल्क के नियमन के बाद परिवार काे लगभग दूर कर दिया। मणिकर्णिका के जिस घाट पर कभी डोमराजा की शवदाह में सत्ता चलती थी, उसी घाट पर अब लकड़ी के दबंग ठेकेदारों और उनके कारिंदों का ही हुकुम अब चलता है। माना जाता है कि महाश्मशान पर कभी चिताएं ठंडी नहीं होतीं लिहाजा परिवार की पहचान आज भी कायम है।