गजेंद्र शर्मा के चश्मा की दुकान विश्व प्रसिद्ध आगरा ताजमहल से कुछ मील की दूरी पर है। यह लॉकडाउन के बाद फिर से खुली है। मोराटोरियम के तहत ब्याज पर ब्याज की लड़ाई कोर्ट में शर्मा ने ही शुरू की। उनकी जिद है कि वे ब्याज पर ब्याज नहीं देंगे। इसके लिए उन्होंने 120 वकीलों की फौज खड़ी कर दी है। यही फौज है जो सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची है और सरकार को जवाब देने में पसीन छूट रहे हैं।
आरबीआई ने दी थी मोराटोरियम की सुविधा
लॉकडाउन के बाद जब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने मोराटोरियम के तहत राहत देने का ऐलान किया था तो शर्मा को एक बार काफी सुकून हुआ था कि उन्हें ईएमआई चुकाने से कुछ महीनों की राहत मिल गई है। पर 53 साल के शर्मा को अब पहले से ज्यादा परेशानी हो रही है। क्योंकि उन्हें नहीं पता था कि जिस मोराटोरियम का वे लाभ उठाने जा रहे हैं बाद में वह उनके लिए और मुसीबत बन जाएगी। अब बैंक भी उन्हें मोराटोरियम के दौरान ब्याज पर ब्याज लेने की बात दोहराने लगे हैं।
सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया शर्मा ने
याद रहे कि मोराटोरियम के दौरान ब्याज में दी गई छूट पर ब्याज वसूलने के मुद्दे पर शर्मा ने कुछ अपने अन्य साथियों के साथ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। कोर्ट में ब्याज पर ब्याज वसूलने से छूट देने का अपील किया है। यह एक ऐसा मसला है जिससे बताया जा रहा है कि बैंकों को 27 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है और इससे देश की अर्थव्यवस्था या बैंकों की बैलेंस शीट पर बुरा असर पड़ने की संभावना जताई गई है।
आगरा के शहर से न्याय की लड़ाई की शुरुआत
आगरा शहर से शर्मा ने जिस न्याय की लड़ाई लड़ने की शुरुआत की है, अब उनके साथ कम से कम 120 वकीलों की फौज आ गई है। अब आरबीआई और सरकार को समझ में नहीं आ रहा कि इस मुद्दे को कैसे हल किया जाए। क्योंकि अब उधार लेने वालों के पास समस्या यह है कि उन्हें मोराटोरियम का लाभ उठाने के बदले इंटरेस्ट पर इंटरेस्ट देना पड़ेगा जो कि उनके लिए सर दर्द साबित होने वाला है। बैंकों तथा सरकार के पास दुविधा यह है कि अगर वे ऐसी छूट दे देते हैं तो उनका खजाना बुरी तरह से खाली हो जाएगा।
रियल इस्टेट, पावर और अन्य कंपनियां भी हैं मोराटोरियम में
इस तरह के लोन लेने वालों में बड़े-बड़े रियल स्टेट इंडस्ट्री के प्लेयर्स, पावर यूटिलिटीज के प्लेयर्स, शॉपिंग मॉल से लेकर छोटे बड़े व्यापारी लोग हैं। इनका यह कहना है की महामारी ने उन्हें आर्थिक रूप से तहस-नहस कर दिया है और ऐसे में ब्याज के ऊपर ब्याज देना तो उन्हें और भी भारी पड़ने वाला है। शर्मा आगे बताते हैं कि 6 महीने का मोराटोरियम मिलने से उन्हें जितनी राहत मिली उससे कहीं ज्यादा उनके लोन का बोझ बढ़ गया है। क्योंकि अब उन्हें ब्याज पर ब्याज देना होगा।
शर्मा के ऊपर है 15.84 लाख रुपए का कर्ज
शर्मा पहले से ही 15.84 लाख रुपए के लोन का ब्याज चुका रहे हैं जिसके लिए उन्होंने मोराटोरियम का विकल्प नहीं चुना। अपनी दुकान में रखी मूर्तियों और रे बैन के सनग्लासेस को ठीक करते हुए शर्मा ने बताया कि मुझे पता था कि मोराटोरियम की यह स्कीम राहत से ज्यादा आगे चलकर परेशान ही करेगी।मार्च में जब दुनिया का सबसे कड़ा लॉकडाउन भारत में लगाया गया तो शर्मा की दुकान बिल्कुल बंद हो गई। फिर भी उन्हें 1.97 लाख रुपए हर महीने उनकी रिकरिंग कॉस्ट से देना पड़ता था।
लॉकडाउन से ज्यादातर लोगों का व्यापार चौपट
1.3 अरब लोगों वाले इस देश में ज्यादातर कंपनियों का यही कहना है कि लॉक डाउन के चलते उनका व्यापार चौपट हो गया है। क्योंकि ग्राहकों ने खर्च को बिलकुल सीमित कर दिया है। यही वजह है कि अभी हाल में अप्रैल से जून की तिमाही में अर्थव्यवस्था में 23.9 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। आर्थिक मामलों के वकील उत्सव त्रिवेदी बताते हैं की मोराटोरियम में लगा ब्याज पर ब्याज अब रियल एस्टेट कंपनियों को और ज्यादा भारी पड़ने लगा है। इसमें तो अब कुछ बंद होने की कगार पर हैं।
एसबीआई ने कहा ज्यादा देनी होगी ईएमआई
याद रहे कि भारत के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) ने एक उदाहरण देते हुए कहा है कि अगर किसी व्यक्ति ने 40,000 डॉलर का लोन 15 साल के लिए लिया है और अगर उसने इस मोराटोरियम का लाभ उठाया है तो अब उसे 16 महीने ज्यादा ईएमआई भरनी होगी। इस दौरान उसे 6000 डॉलर ज्यादा की ईएमआई देनी होगी।
वित्त मंत्रालय करेगा समीक्षा
शर्मा के केस का हवाला देते हुए वित्त मंत्रालय ने पिछले हफ्ते ऐसे मामलों में समीक्षा करने का आदेश दिया है। पहली दफा ऐसा लगता है कि सुप्रीम कोर्ट इस ब्याज पर लिए जाने वाले ब्याज को लेकर सहानुभूति पूर्वक विचार कर रहा है ताकि कर्जदार को कोई अतिरिक्त बोझ ना पड़े। अभी 10 सितंबर को हुई सुनवाई में जस्टिस अशोक भूषण ने कहा था कि कोर्ट यह चाहती है की बैंक अतिरिक्त ब्याज लेने से बचें।
बैंक भी महामारी से हैं प्रभावित
भारत के बैंक भी महामारी से बुरी तरह प्रभावित हैं और जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने कोल माइनिंग और टेलीकम्युनिकेशंस के मामलों में सरकार के फैसले को उलट दिया है उससे बैंक उद्योग को चिंता सताने लगी है। कहीं अगर फिर से मोराटोरियम के दौरान व्याज पर लिए जाने वाले व्याज का फैसला सुप्रीम कोर्ट उलट देता है तो पूरी इंडस्ट्री को यह बहुत बड़ा झटका लगेगा। भारत के बैंक पहले से ही बैड लोन की समस्या से जूझ रहे हैं और उनके पास 120 अरब डॉलर का बैड लोन है। ऐसा लोन लेने वाली ज्यादातर सरकारी कंपनियां हैं।
उन्हें इस बात का भी डर सताने लगा है कि आने वाले दिनों में अब नॉन परफॉर्मिंग लोन (एनपीए) की संख्या काफी बढ़ जाएगी। इससे पूरी इंडस्ट्री को रेड जोन में आ जाने की संभावना प्रबल हो जाएगी और उन्हें फिर से रिस्ट्रक्चरिंग करने की नौबत आ सकती है।
ब्याज पर दी जाने वाली छूट से अस्थिरता पैदा होगी
क्रेडिट रेटिंग एजेंसी इक्रा में विश्लेषक अनिल गुप्ता ने कहा कि निजी बैंकों और सरकारी बैंकों में संयुक्त वार्षिक लाभ (Combined annual profits) 43 बिलियन डॉलर है। इसलिए ब्याज पर दी जाने वाली छूट पूरी तरह से अस्थिरता पैदा करने वाली होगी। भारतीय रिजर्व बैंक ने अदालत को बताया कि ब्याज मुक्त मोराटोरियम से इस क्षेत्र की आय में कम से कम 2 लाख करोड़ रुपए का फ़टका लगेगा। इससे भारत की जीडीपी में एक प्रतिशत की गिरावट आ जायेगी।
आरबीआई ने कहा डिस्काउंट बैंकों के लिए बुरा होगा
रिजर्व बैंक पहले ही कह चुका है कि ऐसे कोई भी डिस्काउंट देश के सभी बैंकों के लिए बहुत बुरा परिणाम लेकर आएंगे। वित्त मंत्रालय कोर्ट में अपनी स्थिति पहले ही स्पष्ट कर चुका है की ऐसी कोई भी छूट वित्तीय सिद्धांतों के खिलाफ होगी। कुछ भी हो पर शर्मा ने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है। अपनी दुकान में पूजा की घंटी बजाते हुए शर्मा कहते हैं कि हमें ऊपर वाले में पूरा यकीन है और वह कुछ ना कुछ रास्ता अवश्य निकालेगा जिससे सबका भला हो। अब इस मामले की सुनवाई 28 सितंबर को होने वाली है।