पूर्वोत्तर के सबसे बड़े पर्व छठ पूजा के मौके पर लोगों में उत्साह का माहौल है। शनिवार शाम को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के बाद लोग कई जगहों पर जागरण रहे हैं और सूर्य देव से जल्दी उदय होने की प्रार्थना कर रहे हैं। शुक्रवार की शाम को खरना के बाद निर्जला व्रत शुरू हुआ था तो आज शनिवार की रात भी जारी रहेगा। छठी मइया की पूजा का व्रत 36 घंटे निर्जला रखा जाता है जो काफी कठिन माना जाता है।
छठ पूजा का सबसे महत्व पूर्ण अंग व्रत के दौरान पवित्रता और भगवान सूर्य को अर्घ्य देना है। इस पूरे व्रत में दो बार अर्घ्य दिया जाता है। पहला अर्घ्य षष्ठी तिथि के दिन अस्ताचलगामी सूर्य को दिया जाता है। दूसरा अर्घ्य उदय होने वाले भगवान भास्कर को दिया जाता है। ऐसे में सूर्यास्त और सूर्योदय का समय जानना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। क्योंकि कई बार धुंध व बदली के चलते सूर्य भगवान दिखाई नहीं देते ऐसे में सूर्योदय का टाइम देखकर ही अर्घ्य देने की रस्म पूरी की जाती है। जानें 3 नवंबर सूर्योदय का समय-
छठ सूर्योदय अर्घ्य का समय-
03 नवंबर: दिन रविवार- चौथा दिन: ऊषा अर्घ्य, पारण का दिन।
सूर्योदय: सुबह 06:34 बजे, सूर्यास्त: शाम 05:35 बजे।
अर्घ्य देने की विधि-
सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए तांबे के पात्र का प्रयोग करें। इसमें दूध और गंगा जल मिश्रित करके पूजा के पश्चात सूर्य देव को अर्घ्य दें।
सूर्य को अर्घ्य देने का मंत्र-
सूर्य को अर्घ्य देते समय ओम सूर्याय नमः या फिर ओम घृणिं सूर्याय नमः, ओम घृणिं सूर्य: आदित्य:, ओम ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्रकिरणाय मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा मंत्र का जाप करें।
छठी मइया देती हैं संतान की प्राप्ति का आशाीर्वाद: मान्यता है कि छठी मइया का पवित्र व्रत रखने से सुख और शांति की प्राप्ति होती है। यश, पुण्य और कीर्ति का उदय होता है। दुर्भाग्य समाप्त हो जाते हैं। निसंतान दंपति को संतान की प्राप्ति होती है।
सूर्यदेव देते हैं निरोग का वरदान : सूर्यदेव सभी प्राणियों पर समान रूप से कृपा करते हैं। वे किसी तरह का भेदभाव नहीं करते। सूर्यदेव प्रत्यक्ष दिखते हैं और सभी प्राणियों के जीवन के आधार हैं। उनकी पूजा वैदिक काल से भी पहले से होती आई है। भगवान सूर्य अपने उपासक को आयु, आरोग्य, तेज, यश, वैभव और सौभाग्य का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। भगवान सूर्य की उपासना से सभी तरह के रोगों से मुक्ति मिल जाती है। कहा जाता है कि जो लोग सूर्यदेव की उपासना करते हैं, वे दरिद्र, दुखी और अंधे नहीं होते। इस त्योहार में सूर्यदेव के साथ छठ मैय्या की पूजा की जाती है। सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश को देवसेना कहा गया है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी का प्रचलित नाम षष्ठी है। षष्ठी देवी को ब्रह्मा की मानसपुत्री भी कहा गया है। पुराणों में देवी का नाम कात्यायनी भी है। षष्ठी देवी को ही स्थानीय बोली में छठ मैय्या कहा गया है।