वैदिक साहित्य में बताया गया है कि घर के अंदर मंदिर नहीं होना चाहिए। ग्राम, नगर, मोहल्ला अथवा समाज के लिए उस क्षेत्र में मंदिर निर्माण श्रेष्ठ होता है, किंतु बीते कुछ दशकों से अपने-अपने घरों में अपने-अपने मंदिर बनाने की प्रथा आरंभ हो गई है।आजकल लोग घरों में एक छोटा सा मंदिर बनाते हैं। इसमें अपनी दैनिक पूजा करते हैं। दैनिक पूजा से हमें ऊर्जा प्राप्त होती है। पूजा दो प्रकार से होती है-नित्य पूजा और नैमित्तिक पूजा। नित्य पूजा में हम अपने इष्टदेव का स्मरण करते हैं। नैमित्तिक पूजा में किसी विशेष व्यवधान उत्पन्न होने पर अथवा साधना की दृष्टि से मंत्र जाप आदि पूजा करते या कराते हैं। नैमित्तिक पूजा कम से कम दिनों में होनी चाहिए। इसके लिए 7, 9, 11 अथवा 21 दिन पर्याप्त होते हैं।
घरों में मंदिर घर के ईशान दिशा में ही स्थापित करना चाहिए क्योंकि ईशान दिशा सबसे पवित्र होती है। उस दिशा में बैठकर पूरब या उत्तर में मुंह करके पूजा करना श्रेष्ठ माना गया है। भगवान के विग्रह अथवा मूर्तियां 6 इंच अथवा एक बित्ता प्रमाण की होनी चाहिए। इससे बड़ी मूर्तियां अपने घरों में ना रखें। उत्तर अथवा पूर्व की दीवार पर मंदिर रख सकते हैं। घर का मंदिर अधिक ऊंचा नहीं रखना चाहिए। पूजा हमेशा बैठकर ही करें। मंदिर की ऊंचाई आपके बैठने के बाद नाभि क्षेत्र से ऊपर होनी चाहिए। मंदिर शुद्ध लकड़ी का हो तो श्रेष्ठ होता है। कुछ व्यक्ति संगमरमर के पत्थरों से विशाल मंदिर बनवा लेते हैं। चूंकि ईशान दिशा हल्की होनी चाहिए इसलिए ऊंचाई वाले अथवा भारी पत्थर मंदिर नहीं होना चाहिए। इससे घर में वास्तु दोष उत्पन्न हो जाता है।
पूजा घर में गणेश जी की दो प्रतिमा नहीं रखनी चाहिए। यदि आपके घर में दुर्गा मां व गणेश जी की मूर्ति है तो छोटा शिवलिंग रख सकते हैं। घर के मंदिर में मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा नहीं करनी चाहिए। घर में मूर्तियों की चल स्थापना होती है। कुछ लोग कहते हैं कि भगवान का मुंह पूर्व अथवा उत्तर में होना चाहिए। यदि ऐसा होता है तो फिर हमारी पूजा की दिशा बदल जाएगी। हमारा मुंह दक्षिण अथवा पश्चिम हो जाएगा और ऐसा नहीं होना चाहिए। पूजा के समय दीपक और जल का लोटा अवश्य होना चाहिए। जल का लोटा अपने बांये हाथ की ओर ईशान दिशा में और दीपक दाहिने हाथ की ओर आग्नेय दिशा में रखें। विशेष पूजा के समय जैसे नवरात्रि में कलश स्थापना होती है उसमें इसका ध्यान रखें कि जल के नीचे जौ बोए जाते हैं, इसलिए इनका स्थान भी ईशान ही होता है।
यदि आप विशेष पूजा के समय घी और तेल का दीया जलाते हैं तो घी का दीया अपने बाएं हाथ की ओर और तेल का दिया दाएं हाथ की ओर रखना चाहिए। देव पूजा उत्तर या पूर्व में मुंह करके की जाती है। पितरों की पूजा दक्षिण में मुंह करके करनी चाहिए। मंदिर में किसी देवता की दो या दो से अधिक मूर्ति नहीं होनी चाहिए। पूजा करते समय या घर में हवन आदि करते समय पत्नी का स्थान आप के दाहिनी ओर होना चाहिए। मंदिर में पवित्रता का विशेष ध्यान रखें। यदि घर में लड्डू गोपाल की मूर्ति स्थापित है उनको नित्य भोजन, स्नान, वस्त्र धारण, श्रृंगार,शयन जागरण आदि करना चाहिए। भगवान शिव और गणेश जी की पूजा में तुलसी दल वर्जित होता है।
भगवान विष्णु ,कृष्ण, श्री राम आदि देव की पूजा में तुलसी दल आवश्यक होता है। भगवान को कांसे, चांदी या तांबे के बर्तन बहुत प्रिय हैं। भगवान को इन्ही बर्तनों में भोग लगाना चाहिए। घर में नियमित रूप से प्रातःकाल और शाम के समय दीपक जलाना चाहिए। यदि दीपक की व्यवस्था नहीं है तो धूपबत्ती भी जला सकते हैं। यदि घर में तुलसी का पौधा है तो शाम के समय गृहिणी को तुलसी के पास दीपक अवश्य जलाना चाहिए। सूर्य को जल देने के समय अपने सामने कोई गमला अथवा बाल्टी रख लेनी चाहिए ताकि सूर्य को अर्पित जल आपके पैरों को न छुए।