सरकार ने शुक्रवार को बताया कि अनुसूचित जातियों के विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति देने के लिए केंद्र की हिस्सेदारी 60 फीसदी और राज्य सरकार की हिस्सेदारी 40 फीसदी होने के फॉर्मूले में कोई बदलाव नहीं किया गया है। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान बताया कि करीब 40 साल तक अनुसूचित जातियों के विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति देने के लिए जो फॉर्मूला चल रहा था उसके अनुसार, पंचवर्षीय योजना के पांच साल में जो राज्य इसके लिए जितनी राशि खर्च करते थे, वह उनकी देनदारी बन जाती थी।
उन्होंने बताया ”लेकिन हमने इस फार्मूले में बदलाव किया। बदलाव के बाद छात्रवृत्ति देने के लिए केंद्र की हिस्सेदारी 60 फीसदी और राज्य सरकार की हिस्सेदारी 40 फीसदी तय की गई। यही व्यवस्था चल रही है और इसमें कोई परिवर्तन नहीं किया गया है।”
उच्च सदन में बसपा के सदस्य अशोक सिद्धार्थ ने यह मुद्दा उठाते हुए दावा किया था कि इस फार्मूले में बदलाव कर केंद्र की हिस्सेदारी 10 फीसदी और राज्यों की हिस्सेदारी 90 फीसदी कर दी गई है। उन्होंने कहा था कि पहले ही आर्थिक परेशानी का सामना कर रहे राज्यों के लिए 90 फीसदी की हिस्सेदारी मुश्किल हो रही है और इसका असर समुदाय के विद्यार्थियों की पढ़ाई पर पड़ रहा है।
सिद्धार्थ ने मांग की कि पूरी 100 फीसदी हिस्सेदारी केंद्र को वहन करना चाहिए।
गहलोत ने इसी मद में पंजाब की बकाया राशि दिए जाने की कांग्रेस सदस्य शमशेर सिंह दुल्लो की मांग पर कहा ”राज्य के हिस्से की राशि रोकी नहीं गई है। यह राशि दी गई है लेकिन राज्य की ओर से उपयोगिता प्रमाणपत्र अब तक नहीं मिल पाया है। यह प्रमाणपत्र मिलने के बाद हम देखेंगे और अगर उनका बकाया शेष होगा तो वह उन्हें दे दिया जाएगा।”