नई दिल्ली । अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट शनिवार को फैसला सुनाएगा। सुबह साढ़े दस बजे फैसला सुनाए जाने की संभावना है। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ द्वारा फैसला सुनाए जाने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर शुक्रवार देर शाम नोटिस अपलोड किया गया। अयोध्या मामले की सुनवाई करने वाली पांच सदस्यीय पीठ में शामिल सभी जजों की सुरक्षा बढ़ाई गई है।
40 दिन की मैराथन सुनवाई के बाद 16 अक्टूबर से फैसला सुरक्षित था
प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने इस संवेदनशील मामले पर लगातार 40 दिनों तक सुनवाई की थी। छह अगस्त को शुरू हुई सुनवाई 16 अक्टूबर तक चली थी। 16 अक्टूबर को पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। संविधान पीठ में जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर भी शामिल हैं। बता दें कि प्रधान न्यायाधीश 17 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
सीजेआई ने यूपी के मुख्य सचिव और डीजीपी से ली कानून-व्यवस्था की जानकारी
फैसले से पहले प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव राजेंद्र कुमार तिवारी और पुलिस महानिदेशक ओम प्रकाश सिंह को बुलाकर राज्य और खासकर अयोध्या में सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लिया था। सूत्रों ने बताया कि उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव और डीजीपी के साथ प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की दोपहर में करीब डेढ़ घंटे बैठक चली। सुप्रीम कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश के चैंबर में हुई इस बैठक में संविधान पीठ में शामिल अन्य जज भी मौजूद थे।
14 अपीलों पर हुई सुनवाई
बता दें कि अयोध्या में 2.77 एकड़ जमीन पर चार दीवानी मामलों पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर, 2010 फैसला सुनाया था। हाई कोर्ट ने इस जमीन को राम लला, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के बीच तीन बराबर हिस्सों मे बांटने का आदेश दिया था जिसके खिलाफ सभी पक्षों ने कुल 14 अपीलें सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की थीं।
शुरू में दर्ज थे पांच मामले
इस विवाद में निचली अदालत में शुरू में पांच मामले दर्ज किए गए थे। 1950 में राम लला के भक्त गोपाल सिंह विशारद ने पहली मुकदमा दर्ज कराया था। उन्होंने विवादित भूमि पर पूजा करने का अधिकार मांगा था। उसी साल परमहंस रामचंद्र ने भी मुकदमा दायर कर पूजा जारी रखने की अनुमति और राम लला को मुख्य गुंबद में रखने का आग्रह किया था। अब गुंबद वाला ढांचा नहीं है। बाद में उन्होंने अपना मुकदमा वापस ले लिया था।
1959 में निर्मोही अखाड़ा बनी पार्टी
निर्मोही अखाड़ा ने 1959 में मुकदमा दायर कर 2.77 एकड़ जमीन पर हक और पूजा के अधिकार की मांग की। इसके बाद 1961 में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी मुकदमा दायर कर विवादित जमीन पर अपना हक जताया।
राम लला विराजमान की तरफ से 1989 में मुकदमा दर्ज
देवता ‘राम लला विराजमान’ की तरफ से उनके निकट मित्र इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज देवकी नंदन अग्रवाल और जन्मभूमि की तरफ से 1989 में मुकदमा दायर कर विवादित जमीन पर मालिकाना हक मांगा गया।