नई दिल्ली। दुनिया की प्रख्यात रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारत में घरेलू मांग में हो रही लगातार कमी को एक गंभीर समस्या के तौर पर चिन्हित किया है। मूडीज हाल के महीनों में कई बार भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौतियों को लेकर अपनी चिंता जता चुकी है। सोमवार को उसकी तरफ से जारी एक रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि देश की पूरी अर्थव्यवस्था में घरेलू मांग के महत्व को देखते हुए उसमें सुधार आये बिना बाकी हालात भी नहीं बेहतर होंगे। इसके साथ ही इसने यह भी कहा है कि अगर घरेलू मांग की स्थिति नहीं सुधरी तो इसका विपरीत असर देश के कई दूसरे कारोबारी क्षेत्रों पर पड़ेगा।
अर्थव्यवस्था की नाजुक स्थिति की तरफ ध्यान आकर्षित करने के साथ ही मूडीज ने कहा है कि चालू वित्त वर्ष के दौरान भारत की आर्थिक विकास दर घट कर 4.9 फीसद पर आ जाएगी। इसमें अगले वर्ष सुधार तो होगा लेकिन वह हाल के वर्षो में जीडीपी विकास दर के मुकाबले काफी कम होगी। पहले मूडीज ने विकास दर अनुमान के 5.8 फीसद रहने की बात कही थी। मूडीज के सहायक वाइस प्रेसिडेंट देबराह टैन का कहना है कि निवेश नहीं आने से मंदी की शुरुआत हुई थी लेकिन अब यह उपभोग को प्रभावित करना शुरु कर दिया है। इसके साथ ही कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों की आय में खास बढ़ोतरी नहीं होने और रोजगार के अवसरों में वृद्धि नहीं होने से स्थिति और गंभीर हो गई है।
अगले वर्ष स्थिति में सुधार होगा लेकिन वह उल्लेखनीय नहीं होगा। सरकार की तरफ से जो कदम उठाये गये हैं उनका थोड़ा बहुत ही असर होगा।मूडीज का कहना है कि वर्ष 2018-19 में भारत की अर्थव्यवस्था में घरेलू मांग की हिस्सेदारी 57 फीसद था। लेकिन घरेलू मांग कई औद्योगिकी व कारोबारी सेक्टर से जुड़ा होता है। इसमें कमी आने का असर दूसरे सेक्टरों पर भी पड़ने लगता है। आगे रिपोर्ट में कहा गया है कि घरेलू बाजार में आटोमोबाइल की मांग में भारी कमी आने का भी कई सेक्टरों पर असर पड़ेगा। घरेलू मांग में कमी होने का असर है कि आम जनता की वित्तीय लेन देन की शक्ति कम हो रही है जो देश के ऋण बाजार पर असर डालेगा। ग्राहकों को ज्यादा कर्ज देने वाले निजी क्षेत्र के बैंकों को इसका प्रकोप झेलना पड़ेगा क्योंकि आर्थिक स्थिति खराब होने से लोगों के लिए कर्ज को चुकाने में दिक्कत आएगी। कर्ज देने वाली कई गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की स्थिति सभी के सामने है।