देहरादून। देश के विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों के 79 वें दो दिवसीय अखिल भारतीय सम्मेलन का दून में बुधवार को आगाज होगा। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला इसका उद्घाटन करेंगे। उत्तराखंड में पहली बार हो रहे इस आयोजन में संविधान की दसवीं अनुसूची और अध्यक्ष की भूमिका, संसदीय लोकतंत्र के सुदृढ़ीकरण व क्षमता निर्माण विषयों पर मुख्य रूप से चर्चा होगी। इस मौके पर राज्य विधानमंडलों के कार्यकरण और वित्तीय स्वायत्तता को लेकर पूर्व में गठित तीन समितियां अपनी सिफारिशों के साथ रिपोर्ट भी प्रस्तुत करेंगी।
देहरादून में आयोजित पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा के उपसभापति के अलावा 17 विधानसभा अध्यक्ष, 12 उपाध्यक्ष, विधान परिषदों के पांच सभापति, एक उपसभापति और विधानमंडलों के 21 सचिव शिरकत करेंगे। सम्मेलन में राज्य विधानमंडलों के पीठासीन अधिकारी अपने अनुभव साझा करेंगे।
उद्घाटन सत्र के बाद विभिन्न सत्रों में संविधान की दसवीं अनुसूची और अध्यक्ष की भूमिका पर चर्चा होगी। हालांकि, दसवीं अनुसूची में दल परिवर्तन के आधार पर संसद या राज्य विधानमंडलों की सदस्यता की निरर्हता के बारे में उपबंध किए गए हैं। निरर्हता के संबंध में सभापति व अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होता है। इनमें और क्या कदम उठाए जा सकते हैं, इस पर मंथन होगा।
चर्चा का एक अन्य विषय शून्यकाल सहित सभा के अन्य साधनों के माध्यम से संसदीय लोकतंत्र का सुदृढ़ीकरण और क्षमता निर्माण है। यद्यपि विधानमंडलों के सदस्यों के पास कानून बनाने और कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करने की शक्ति होती है। इनका प्रयोग संसदीय प्रक्रिया व नियमों के अधीन किया जाता है, लेकिन शून्यकाल में सदस्य ऐसे मामले उठा सकते हैं, जिन्हें वे अविलंबनीय लोक महत्व का मानते हैं। इन्हें सामान्य प्रक्रिया नियमों के अंतर्गत उठाने में होने वाले विलंब से वे बचना चाहते हैं।
सम्मेलन में तीन समितियों की रिपोर्ट भी पेश होगी। असोम विस के अध्यक्ष हितेंद्रनाथ ‘विधानमंडलों के कार्यकरण में संचार और सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग का मूल्यांकन’, उप्र के विस अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित ‘सभा के सुचारू कार्यकरण सबंधी मामलों’ और राजस्थान के विस अध्यक्ष सीपी जोशी ‘विधानमंडल सचिवालयों की वित्तीय स्वायत्तता की जांच’ पर अपनी रिपोर्ट रखेंगे।