13 दिसंबर से हिंदी वर्ष का पूस का महीना शुरू हो गया है। वहीं 16 दिसंबर यानी आज सूर्यदेव के धनु राशि में प्रवेश के साथ खर मास भी प्रारंभ हो गया है। भारतीय पंचांग के अनुसार सूर्य जब-जब गुरु की राशि यानी धनु राशि में रहता है तब तक खरमास माना जाता है। इस समय मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं। खरमास में मांगलिक कार्यों के संपन्न नहीं होने का एक वैज्ञानिक आधार भी है।
- खरमास से जुड़े धार्मिक व वैज्ञानिक पहलू
13 दिसंबर शुक्रवार को प्रात: 9 बजकर 8 मिनट पर सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करते ही खर मास या मलमास प्रारंभ हो गया है। खरमास में विवाह, नूतन गृह प्रवेश, नया वाहन, भवन क्रय करना, मुंडन जैसे शुभ कार्यों पर एक माह के लिए प्रतिबंध लगा है। वैदिक ज्योतिष में गुरु को समस्त शुभ कार्यों का प्रतिनिधि ग्रह माना गया है। सूर्य जब गुरु की राशि धनु और मीन में प्रवेश करता है तो इससे गुरु निस्तेज हो जाते हैं, उनका प्रभाव समाप्त हो जाता है। शुभ कार्यों के लिए गुरु का पूर्ण बलशाली अवस्था में होना आवश्यक है। इसलिए इस एक माह के दौरान शुभ कार्य करना वर्जित रहता है। खासकर विवाह तो बिल्कुल नहीं किए जाते हैं क्योंकि विवाह के लिए सूर्य और गुरु दोनों को मजबूत होना चाहिए।
- एक माह बाद मकर राशि में प्रवेश
सूर्य एक माह बाद मकर राशि में प्रवेश करेगा। इस खास दिन को मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करके दान किया जाता है। इस दिन से उत्तरायण प्रारंभ होता है, यानी सूर्य अगले 6 महीने के लिए उत्तरायण होता है। जिसे देवताओं का दिन कहा गया है। विवाह सहित समस्त शुभ कार्य इस दिन से प्रारंभ हो जाते हैं।
- करें भगवान विष्णु का पूजन
खरमास के प्रतिनिधि आराध्य देव भगवान विष्णु हैं। इसलिए इस माह के दौरान भगवान विष्णु की पूजा नियमित रूप से करना चाहिए। खरमास में आने वाली दोनों एकादशियों का भी विशेष महत्व होता है। इनमें व्रत रखकर विधि -विधान से भगवान विष्णु का पूजन करने से समस्त सुखों की प्राप्ति होती है। इस मास में प्रतिदिन स्नानादि से निवृत होकर भगवान विष्णु के मंत्र ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम: का तुलसी की माला से जाप करें। इस दौरान पीपल के वृक्ष में नियमित जल और कच्चा दूध अर्पित करने से धन-सुख, वैभव की प्राप्ति होती है। दान, पुण्य, जप और भगवान का ध्यान लगाने से कष्ट दूर हो जाते हैं।
- ये है वैज्ञानिक पक्ष
सूर्य की तरह गुरु ग्रह में भी हाइड्रोजन और हीलियम की उपस्थिति है। सूर्य की तरह इसका केंद्र भी द्रव्य से भरा हुआ है, जिसमें अधिकतर हाइड्रोजन ही है। पृथ्वी से 15 करोड़ किलोमीटर दूर स्थित सूर्य तथा 64 करोड़ किलोमीटर दूर स्थित बृहस्पति ग्रह में वर्ष में एक बार ऐसे जमाव में आते हैं जिनकी वजह से बृहस्पति के कण काफी मात्रा में पृथ्वी के वायुमंडल में पहुंचते हैं। ये कण एक-दूसरे की कक्षा में आकर अपनी किरणों को आंदोलित करते हैं। उक्त कारण से व्यक्ति की मानसिक स्थिति में भी परिवर्तन आता है, जिससे मांगलिक कार्यों में व्यवधान संभावित है। इसी कारण से मंगल कर्म करना निषेध हैं।