संसद से नागरिकता संशोधन विधेयक के पारित होने और उसके कानून का रूप लेने के बाद देश का माहौल यकायक बदल गया। इसका देश के कई हिस्सों में विरोध हो रहा है। बंगाल और दिल्ली में तो विरोध के नाम पर बड़े पैमाने पर आगजनी और तोड़फोड़ देखने को मिली। इस हिंसा में सरकारी और गैर सरकारी संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचाया गया। इस कानून को लेकर हर किसी के पास कुछ न कुछ कहने को है, लेकिन नागरिकता कानून कोई नया कानून नहीं है। इसमें तो संशोधन कर यह व्यवस्था भर की गई है कि बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में धार्मिक आधार पर उत्पीड़न के शिकार उन अल्पसंख्यकों को तय प्रक्रिया के तहत नागरिकता दी जाएगी जो दिसंबर 2014 के पहले भारत आ चुके हैैं। केवल अल्पसंख्यकों को इसीलिए शामिल किया गया है, क्योंकि बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में इस्लाम राजकीय धर्म है।
इसका विरोध कर रहे लोग इस कानून को वापस लेने की मांग करते हुए यह भी कह रहे हैैं कि उन्हें एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर स्वीकार नहीं। लोकतांत्रिक देश में कोई किसी भी कानून का विरोध कर सकता है, लेकिन अभी तो विरोध के बहाने हिंसा अधिक हो रही है। इसी कारण सवाल उठ रहे हैैं कि आखिर यह विरोध हो रहा है या फिर अराजकता फैलाई जा रही है?
हालांकि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की ओर से बार-बार यह कहा जा रहा है कि नागरिकता कानून का किसी भी भारतीय नागरिक से कोई वास्ता नहीं और यह कानून तो उत्पीड़न के कारण भारत आए लोगों को नागरिकता देने का है, न कि किसी की नागरिकता लेने का, फिर भी विरोध के नाम पर हिंसा का सहारा लिया जा रहा है। जिन तीन पड़ोसी देशों में उत्पीड़न के शिकार लोगों के पास भारत भाग आने के अलावा यदि कोई विकल्प है तो यही कि या तो वे मारे जाएं या फिर अपना धर्म त्याग दें। क्या यह एक हकीकत नहीं और क्या इसी कारण बांग्लादेश, पाकिस्तान में अल्पसंख्यक लगातार तेजी से कम नहीं होते जा रहे हैैं?
नागरिकता कानून का पूर्वोत्तर में जो विरोध हो रहा है वह शेष देश के विरोध से अलग है। पूर्वोत्तर के लोगों को भय है कि पड़ोसी देशों से आए लोगों को यदि नागरिकता मिली तो उनकी संस्कृति और भाषा के लिए खतरा पैदा हो जाएगा। ऐसे किसी खतरे की आशंका शेष देश के लोगों को नहीं-भले ही वे हिंदू हों या मुसलमान, फिर भी आम मुसलमानों में यही डर भरा जा रहा है कि यह कानून उनके खिलाफ है या फिर इससे उनका अहित हो सकता है। यह एक सोचा-समझा कुप्रचार है। यह कुप्रचार बार-बार के इस स्पष्टीकरण के बाद भी जारी है कि देश के किसी भी नागरिक को न तो नागरिकता कानून से डरने की जरूरत है और न ही प्रस्तावित एनआरसी से।
यदि नागरिकता कानून और प्रस्तावित एनआरसी को लेकर सबसे ज्यादा आशंका मुस्लिम समाज के बीच है तो इसका एक बड़ा कारण मुस्लिम समाज का नेतृत्व है जो अपने लोगों को सही जानकारी देने के बजाय उन्हें बरगलाने और उनमें असुरक्षा की भावना भरने का काम कर रहा है।
राजनीतिक स्वार्थ के चलते मुस्लिम समाज को किस्म-किस्म के खतरों का भय दिखाकर उसे सड़क पर उतारने का काम एक लंबे अरसे से होता चला आ रहा है। यह अभी भी हो रहा है। जब इस आशंका को दूर करने का काम होना चाहिए तब उसे गहराने का काम किया जा रहा है। यह नकारात्मक राजनीति तो बर्बादी का रास्ता है। दुर्भाग्य से यह नकारात्मक राजनीति शिक्षा संस्थानों में भी देखने को मिल रही है। नकारात्मक राजनीति में फंसा कोई समाज ढंग से तरक्की नहीं कर सकता। समाज को समृद्ध करने वाले शिक्षा संस्थान आज राजनीतिक टकराव और अशांति का केंद्र बन रहे हैैं, जबकि इस्लाम में शांति को सबसे बड़ी अच्छाई कहा गया है।
जितना जरूरी ज्ञान हासिल करना है उतना ही नकारात्मक विचारों से दूर रहना। पैगंबर साहब का सबसे ज्यादा जोर शांति पर रहा। एक अवसर पर पैगंबर साहब और उनके साथी उम्रहा के लिए मदीना से मक्का की ओर रवाना हुए, लेकिन रास्ते में उन्हें हुदैबिया नामक स्थान पर रोक दिया गया। इससे हालात तनावपूर्ण हो गए, क्योंकि मक्का में तीर्थयात्रा पर आने के लिए किसी को रोका नहीं जाता था। इस रोक के बावजूद पैगंबर साहब ने शांति की बहाली को महत्व दिया और वह अपने विरोधियों के साथ शांति संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार हो गए और वह भी तब जब संधि की शर्तें विरोधियों के पक्ष में थीं। इसे हुदैबिया संधि कहा गया। यह संधि केवल इसलिए संभव हो पाई, क्योंकि पैगंबर साहब ने शांति को सर्वोपरि समझा। यह प्रसंग इस्लाम में शांति के महत्व को दर्शाता है।
हर कीमत पर शांति इस्लाम का प्रमुख सिद्धांत है
आमतौर पर लोग कहते हैैं कि पहले न्याय मिले फिर शांति आएगी, लेकिन हर कीमत पर शांति इस्लाम का प्रमुख सिद्धांत है। समाज में जब शांति होगी तभी सभी समस्याओं के हल का अवसर मिल सकता है। आज क्या हो रहा है? उग्र और अराजक विरोध का सहारा लिया जा रहा है। आखिर सड़कों पर उतरे कितने लोग जानते हैैं कि नागरिकता कानून किसके लिए है? अशांति फैलाने वाले केवल अपनी ऊर्जा ही जाया नहीं कर रहे, बल्कि उसे दूसरों के हित में इस्तेमाल करने के साथ ही अपनी छवि से भी खेल रहे हैैं। मुस्लिम समाज को समझना होगा कि यदि वह नकारात्मकता को नहीं त्यागता तो वह अपनी अज्ञानता से उपजी असुरक्षा की भावना से बाहर भी नहीं आ सकता।