संयुक्त राष्ट्र। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतेरस ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का सम्मान करने की अपील करते हुए भारत में नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन में हिंसा पर चिंता जाहिर की है।
प्रदर्शनकारियों पर बलप्रयोग को लेकर संयुक्त राष्ट्र चिंतित
संयुक्त राष्ट्र महासचिव के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने कहा, ‘हम हिंसा और सुरक्षा बलों के कथित तौर पर अत्यधिक बलप्रयोग को लेकर चिंतित हैं। हम संयम बरतने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण रूप से एकत्रित होने के अधिकारों के पूर्ण सम्मान का आग्रह करते हैं।’
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की उच्चायुक्त की टिप्पणियां
दुजारिक से पूछा गया था कि महासचिव की सीएए के खिलाफ भारत में जारी प्रदर्शनों को लेकर क्या राय है। उन्होंने कहा कि वह अधिनियम पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की उच्चायुक्त की टिप्पणियों का भी उल्लेख करेंगे।
पिछले सप्ताह नागरिकता संशोधन कानून पारित हुआ है जिसमें बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक हिंदू, सिख, जैन, पारसी, बौद्ध और ईसाइयों को नागरिकता देने का प्रावधान है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश की याचिका में कहा गया है कि यह कानून 1985 के असम समझौते के खिलाफ भी है।
उनका यह भी कहना है, सुप्रीम कोर्ट घोषित करे कि नागरिकता संशोधन कानून अंतरराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन करता है जिन पर भारत ने हस्ताक्षर किए हैं। इस कानून को तैयार करने में संयुक्त संसदीय समिति की सात जनवरी, 2019 की रिपोर्ट की अनदेखी की गई है।
कानून में संशोधन करके घुसपैठिये की परिभाषा बदल दी गई
कानून में संशोधन करके अवैध रूप से देश में घुसे लोगों (घुसपैठिये) की परिभाषा बदल दी गई है। यह कानून भेदभाव करता है क्योंकि इसमें मनमाने तरीके से सिर्फ तीन देशों के छह धर्मावलंबियों को शामिल किया गया है और विशेष तौर पर एक धर्म और भाग को छोड़ दिया गया है। ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू), पीस पार्टी, गैर-सरकारी संगठन रिहाई मंच और सिटीजन अगेंस्ट हेट, एहतशाम हाशमी और सिंब्योसिस के लॉ स्टूडेंट, जन अधिकार पार्टी, असम में नेता विपक्ष देबबत्रा और वकील एमएल शर्मा, केरल के राजनीतिक दल इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग आदि ने याचिका की है।