नई दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब दिल्ली के रामलीला मैदान से डिटेंशन सेंटर के बारे बताया तो हर किसी के मन में इस सेंटर को जानने के लिए उत्सुकता बढ़ गई। लोगों के मन में तमाम तरह के सवाल उठने लगे। कुछ कहने लगे कि जिन लोगों के पास उनकी पहचान से संबंधित कागज नहीं है उनको यहां रखा जाएगा उसके बाद उनको देश से बाहर निकाल दिया जाएगा।
अल्पसंख्यकों के मन में अधिक डर समा गया। कुछ नेताओं ने लोगों को बरगलाने का भी काम किया जिसकी वजह से उपद्रव भी हुए। हम आपको डिटेंशन सेंटर के बारे में विस्तार से जानकारी दे रहे हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में दिए इंटरव्यू में कहा कि डिटेंशन सेंटर बनाया जाना एक सतत प्रक्रिया है। अगर कोई विदेशी नागरिक पकड़ा जाता है तो उसे डिटेंशन सेंटर में ही रखा जाता है। अभी तक ऐसे लोगों को जेल में ही रखा जाता था। फिलहाल असम में ऐसा एक नया सेंटर बनाया जा रहा है। कहीं इन्हें नजरबंदी शिविर, कहीं यातना केंद्र, कहीं इमिग्रेशन डिटेंशन सेंटर तो कहीं कंसन्ट्रेशन कैंप कहा जाता है।
क्या होता है डिटेंशन सेंटर
डिटेंशन सेंटर (हिरासत केंद्र) ऐसे ठिकाने होते हैं, जहां अवैध विदेशी नागरिकों को रखा जाता है। भारत के दि फॉरेनर्स एक्ट के सेक्शन 3(2)(सी) के तहत केंद्र सरकार को यह अधिकार है कि वह किसी भी अवैध नागरिक को देश से बाहर निकाल सकती है। देश से बाहर करने की प्रॉसेस के दौरान ऐसे लोगों को इन्हीं डिटेंशन सेंटरों में ही रखा जाता है। दरअसल जिनके पास देश में रहने के कागजात मौजूद नहीं होते हैं उनको यहां पर रखकर उनके देश वापस भेज दिया जाता है।
कहां बन रहा है डिटेंशन सेंटर?
असम के गोवालपारा जिले के मटिया में पहले डिटेंशन सेंटर (हिरासत केंद्र) का निर्माण कार्य चल रहा है। यहां इसका एक बोर्ड भी लगा हुआ। इस सेंटर का करीब 65 फीसदी हिस्सा अब तक बनकर तैयार हो चुका है। मटिया में आबादी से दूर ढाई हेक्टेयर में बन रहे डिटेंशन सेंटर का काम दिसंबर 2018 से चल रहा है, इसे दिसंबर 2019 तक बन जाना था लेकिन अब बारिश और बाढ़ के कारण इसमें देरी हो गई। 300 मजदूर इस निर्माण कार्य को पूरा करने में लगे है। इस निर्माण कार्य को पूरा करने के लिए 31 दिसंबर 2019 की डेडलाइन रखी गई थी लेकिन अब इसे 31 मार्च 2020 तक सारा काम पूरा कर लिया जाएगा। इसके निर्माण में कुल 46 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। ये पैसा केंद्र सरकार खर्च कर रहा है।
कितने लोगों के लिए होगा सेंटर
इस डिटेंशन सेंटर में तीन हजार लोगों को रखने का इंतजाम किया जा रहा है। यहां महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग सेल बनाए गए हैं। फिलहाल इस सेंटर का 70 फ़ीसदी काम पूरा कर लिया गया है। मटिया डिटेंशन सेंटर में चार-चार मंजिलों वाली 15 इमारतें बन रही हैं। इनमें 13 इमारतें पुरुषों और 2 महिलाओं के लिए बन रही है। इस कैंपस में स्कूल और अस्पताल भी बन रहा है ताकि नागरिकता साबित न करने वालों को मूलभूत सुविधाएं मिल सकें।
क्या पहले भी मौजूद थे डिटेंशन सेंटर?
असम में पहले से कई डिटेंशन सेंटर मौजूद हैं। असम के मटिया में पहला डिटेंशन सेंटर तैयार हो रहा है लेकिन यहां के कई जिलों में मौजूदा जेल को भी डिटेंशन सेंटर के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा है। असम में डिब्रूगढ़, सिलचर, तेजपुर, जोरहाट, कोकराझार और गोवालपारा में जेलों को ही डिटेंशन सेंटर बनाया गया है।
कब बनाया जेलों को डिटेंशन सेंटर?
जेलों को डिटेंशन सेंटर बनाने का फैसला 2009 में कांग्रेस सरकार ने लिया था। उस वक्त केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी। उस दौरान पी चिंदबरम गृह मंत्री थे और राज्य की कमान तरूण गोगोई के हाथ में थी। उस वक्त की सरकार ने घुसपैठियों की लिस्ट को लेकर कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था। ये घुसपैठिए कहीं गायब न हो जाए इस वजह से इन्हें डिटेंशन सेंटर में रखा गया था।
क्या कहते हैं सरकारी आंकड़े?
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक असम में 1985 से लेकर इस साल अक्टूबर तक एक लाख 29 हजार लोगों को विदेशी घोषित किया गया है लेकिन इनमें करीब 72 हजार लोगों का कोई पता-ठिकाना नहीं है जबकि असम एनआरसी की लिस्ट से 19 लाख लोगों को बाहर रखा गया है। ये 72 हजार लोग देश के अलग-अलग प्रदेशों में पहुंच गए हैं या उनका कोई रिकार्ड नहीं है।
दुनिया का दूसरा बड़ा डिटेंशन सेंटर
अमरीका के बाद असम में बनाया जा रहा डिटेंशन सेंटर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा डिटेंशन सेंटर होगा। इसके अंदर अस्पताल और ठीक गेट के बाहर प्राइमरी स्कूल से लेकर सभागार और बच्चों और महिलाओं की विशेष देखभाल के लिए तमाम सुविधाएं होगी। फिलहाल असम की अलग-अलग छह सेंट्रल जेलों में बने डिटेंशन सेंटरों में 1133 घोषित विदेशी लोगों को रखा गया है।
फ्रांस में शुरू हुआ था दुनिया का पहला डिटेंशन सेंटर
यूएस के फ्रीडमफॉरइमिग्रेंट्स के मुताबिक, दुनिया का पहला इमिग्रेशन डिटेंशन सेंटर (जो सिर्फ अवैध नागरिकों को रखने के मकसद से ही तैयार किया गया था) 1892 में यूएस के न्यू जर्सी में शुरू किया गया। जिसका नाम एलिस आइलैंड इमिग्रेशन स्टेशन था। फ्रांस में 17वीं और 18वीं सदी में बेसिले नामक जगह पर बने किले को हिरासत केंद्र के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था। आठ टावरों वाला यह किला चारों तरफ से दीवार से घिरा हुआ था। फ्रांस के राजा चार्ल्स पंचम द्वारा 22 अप्रैल 1370 को इसका निर्माण कार्य शुरू करवाया गया था। जिसमें पड़ोसी देशों से आए अप्रवासियों और युद्धबंदियों को रखा जाता था। इसे बेसिले सैंट-एंटोनी के नाम से भी जाना जाता है।
US में सबसे ज्यादा डिटेंशन सेंटर
1892 में दुनिया का पहला इमिग्रेशन डिटेंशन केंद्र ‘एलिस आइलैंड’ यूएस के न्यू जर्सी में खोला गया।
1910 में यूएस के कैलिफोर्निया में दूसरा इमिग्रेशन डिटेंशन केंद्र ‘एंजल आइलैंड इमिग्रेशन स्टेशन’ शुरू हुआ।
1970 में यूरोप का पहला डिटेंशन सेंटर ‘हार्डमंडवर्थ डिटेंशन सेंटर’ इंग्लैंड में शुरू हुआ।
1982 में साउथ अफ्रीका में देश का पहला इमिग्रेशन डिटेंशन सेंटर शुरू हुआ। पहले यहां जेल में ही इमिग्रेंट्स को रखा जाता था। अफ्रीका में इस तरह का यह पहला सेंटर था।
2002 में क्यूबा में अमेरिका द्वारा अमेरिकी सैनिक अड्डे ग्वांतानामो बे को स्थापित किया गया। इस जगह को पहले पहले इमिग्रेशन डिटेंशन साइट के तौर पर ही इस्तेमाल किया जाता था।
2012 में इजरायल ने 10 हजार की क्षमता वाला होलोट डिटेंशन सेंटर शुरू किया।
2014 में यूएस में ओबामा प्रशासन ने फैमिली डिटेंशन सेंटर को शुरू किया। नवंबर 2016 में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद वहां निजी जेल उद्योग के स्टॉक्स में बढ़ोत्तरी हुई। यूएस में ओबामा प्रशासन के दौरान 3 मिलियन से ज्यादा लोगों को देश से बाहर निकाला गया।