अदरक वाली चाय और भुने कबाब के साथ टैरेस पार्टियां तो ठंड के माकूल होती हैं लेकिन यह मौसम बढ़े हुए रक्तचाप वालों के लिए अच्छा नहीं है। बेंगलुरु के राजीव गांधी यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस में न्यूरोसाइंस के अतिथि प्रोफेसर डॉ. नरेश पुरोहित ने यहां नेशनल काउंटिंग मेडिकल एजूकेशन प्रोग्राम में कहा कि देश में पिछले वर्षों के दौरान ठंड के मौसम में तापमान में अधिकतम गिरावट से तीन तरह के स्ट्रोक, विशेषकर रक्तस्त्रावी जैसे स्ट्रोक की घटनाएं बढ़ी हैं।
इन दिनों देश के उत्तरी, पश्चिमी और मध्य हिस्से में अनेक स्थानों पर अत्यंत ठंड पड़ रही है। हाड़ कपाती ठंड त्वचा के जरिए शरीर के तापमान को कम कर देती है, क्योंकि आपके शरीर का तापमान 37 डिग्री सेल्सियस और बाहरी तापमान करीब आठ डिग्री के बीच काफी अंतर होता है।
इससे हमारे शरीर में त्वचा के समीप की नसें संकुचित हो जाती हैं, जिसके कारण रक्तचाप बहुत बढ़ जाता है। बहुत से लोगों में यही संकुचन मस्तिष्क की ओर बढ़ जाता है और यही मस्तिष्काघात का कारण बनता है।
ठंड के मौसम में रक्तचाप 9० से 14० के बीच होना चाहिए जबकि मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों की नसें और कमजोर होती हैं तथा इनका रक्तचाप 8० से 12० के बीच होना चाहिए। अगर रक्तचाप 11० से 18० और इससे भी अधिक हो जाए तो यह खतरे की सूचक है तथा मरीज को तत्काल डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
इस तरह का मौसम उच्च रक्तचाप वालों के लिए जोखिमपूर्ण होता है, इसलिए युवाओं समेत सामान्य व्यक्तियों को भी अपने रक्तचाप की जांच करवाते रहना चाहिए। मस्तिष्काघात के बाद पीड़ित व्यक्ति के बचने के 5० प्रतिशत ही उम्मीद रहती है। ऐसे मरीजों को गर्म मौसम से अचानक बहुत कम तापमान वाली जगह में जाने से आगाह किया जाता है।
आस्ट्रेलियाई स्ट्रोक एसोसिएशन ने हाल में तापमान से समायोजन को लेकर कई टिप्स दिए हैं, जो इस प्रकार है-
-कमरे को गर्म रखने के दौरान दरवाजे और खिड़कियां बंद कर देनी चाहिए। कमरे का औसत तापमान 18-21 डिग्री सेंटीग्रेड हो।
-अपने रक्तचाप की जांच करते रहें और अगर यह सामान्य से अधिक हो तो अपने डॉक्टर से मिलें।
-अच्छा खाएं। भोजन गर्मी का अच्छा स्रोत है, अत: आपको नियमित गर्म भोजन करना चाहिए, जिसमें वसा और नमक की मात्रा कम हो और रोज गर्म पानी पीएं।
-अगर संभव हो चलना-फिरने की आदत डालें।