इंदौर। पर्यावरण संरक्षण और गोसंवर्धन का संदेश देते हुए 292 साल पुरानी सरकारी होली सोमवार को गाय के गोबर के 1100 कंडों से जलाई जाएगी। होली दहन शाम सात बजे होलकर कालीन परंपरा के अनुसार अभिषषेक-पूजन कर किया जाएगा। होलिका दहन के अवसर पर पूजन के लिए शहरभर से लोग राजवाड़ा चौक पर पहुंचेंगे। गेहूं की बालियां (उम्बी) सेंककर सुख-समृद्धि की कामना की जाएगी। गणपति-पंचामृत पूजन के बाद अभिषषेक और आरती कर दहन किया जाएगा।
खासगी देवी आहिल्याबाई होलकर ट्रस्ट के मैनेजर राजेंद्र जोशी ने बताया कि सरकारी होली दहन की परंपरा पुरानी है। 1728 में होलकर राज्य के संस्थापक सूबेदार मल्हार राव होलकर ने दहन की शुरआत की थी। 1948 में रियासत के विलय के बाद इसका दहन सरकारी होली के रूप में किया जाने लगा जो आज भी जारी है।
होलकर रियासत में हिंदू-मुस्लिम साथ मिलकर त्योहार मनाते थे। यह पूरे पांच दिन मनाया जाता था। इसकी तैयारियां एक महीने पहले दांडी पूर्णिमा से होती थी। राजवाड़ा चौक को पानी से धोकर तैयार किया जाता था। दहन के लिए चार घोड़ो की बग्घी पर सवार होकर होलकर शासक आते थे। यहां ब्रिटिश इम्पीरियल और होलकर सेना द्वारा सलामी और गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता था। होलकर परंपरा के मुताबिक होली प्रज्ज्वलित करने की अग्नि सायरा नाका (पिंजारा बाखल का कॉर्नर) से लाई जाती थी। दहन पर 20 घुड़सवार बंदूकधारियों द्वारा 21–21 राउंड फायर किए जाते थे। इस मौके पर पांच तोपों की सलामी दी जाती थी। बलि स्वरूप भूरा कद्दू काटा जाता था।