लखनऊ। नगर निगम व वर्ड विकास निधि के लगभग 13.92 करोड़ के कामों को नगर निगम प्रशासन ने फिर से टेंडर करने से मना कर दिया है। इसे एक वर्ष पूर्व नगर निगम से टेंडर कराया जा चुका है। इस धनराशि से विभिन्न वार्डों में सड़क व नाली का निर्माण होना है। वहीं नगर निगम के इस रवैये से पार्षदों में नाराजगी है। अब वह हाईकोर्ट की शरण में जाने की तैयारी कर रहे हैं।
लोकसभा चुनाव के कारण वर्ष 2018-19 वित्तीय वर्ष में 270 करोड़ रुपए का काम फंस गए थे। स्वीकृत होने के बावजूद उन्हें शुरू नहीं किया जा सका था। इस धनराशि को अगले वित्तीय वर्ष 2019-20 के बजट में दायित्च में डाल दिया गया था। इसमें 125 करोड़ रुपए के काम अभियंत्रण विभाग के थे। इस दायित्व में वार्ड विकास निधि व नगर निगम निधि के 68.38 करोड़ रुपए में 54.46 करोड़ रुपए के काम तो शामिल किया गया लेकिन 13.92 करोड़ रुपए के काम को छोड़ दिया गया। यह वह काम है जिसकी बजट सील लग चुकी थी और निविदा भी आमंत्रित हो चुकी थी। लेकिन निविदा खोला नहीं जा सका था। इसपर सदन में भी हंगामा हुआ था। सदन ने इस काम को भी शामिल करने की अनुमति दे दी थी। इस धनराशि से कुल 280 काम होने हैं।
आचार संहिता के कारण काम बाधित होने व उसे दायित्व से बाहर करने पर पार्षदों में बहुत नाराजगी है। भाजपा पार्षद दल के नेता रामकृष्ण यादव व पार्षद दिलीप श्रीवास्तव ने कहा कि नगर निगम के अधिकारी अपनी मनमानी पर उतारू हैं। चुनाव के दौरान जनता को उनके क्षेत्र में काम का आश्वासन दिया गया था। क्षेत्र की जनता को जवाब नहीं दे पा रहे हैं। इस संबंध में सदन में फैसला हो चुका है। उसमें तय हुआ था कि जिन कार्यों की निविदा आमंत्रित नहीं हो सकी है सिर्फ उनको दायित्व में शामिल न किया जाए लेकिन बजट सील व निविदा आमंत्रित हो चुके कामों को दायित्व में शामिल कर लिया जाए। नगर निगम के अधिकारी सदन के फैसले को भी मानने को तौयार नहीं है। इस मुद्दे पर हाईकोर्ट में अपील दाखिल की जाएगी।