उत्तर प्रदेश। लॉकडाउन के बाद दिल्ली से परिवार संग मोपेड से निकले विनोद तिवारी का शव हाथरस से गांव पहुंचा। अर्थी उठी तो परिवारीजनों के विलाप से लोगों के कलेजे कांप गए। मृतक के मासूम बच्चे अपने बाबा से पूछ रहे थे मेरे पापा कहां गए। बच्चों के सवालों का जवाब बाबा तो नहीं दे सके पर उनकी आंखों से आंसुओं का सैलाब जरूर उमड़ पड़ा। वहां मौजूद लोगों के लिए भी यह मंजर झकझोर देने वाला था।
सिद्धार्थनगर जिले के बांसी क्षेत्र के बडहरा गांव निवासी विनोद तिवारी (30) पुत्र राममिलन तिवारी दिल्ली के नवीन बिहार कॉलोनी में किराए पर कमरा लेकर रह रहा था। वह वहां अपनी पत्नी सविता, पुत्र विवेक (10), विराट (5) व दो छोटे भाइयों गोलू तिवारी व संदीप तिवारी के साथ रहता था। उसके माता-पिता व बड़े भाई कामता तिवारी गांव पर ही रहते थे। कैंसरपीड़ित विनोद दिल्ली में कई साल से सेल्समैन का काम करता था। देश में लॉकडाउन के बाद काम धंधा बंद हुआ और जब भूख व दुश्वारियों से परिवारीजनों की जान पर बन आई तो वह परिवारीजनों संग शुक्रवार रात मोपेड से दिल्ली से बांसी के लिए चल दिया।
शनिवार दोपहर लगभग साढ़े बारह बजे हाथरस जिले के सिकंदराराऊ पहुंचने के बाद सभी ने वहां चल रहे एक लंगर में रुक कर खाना खाया। विनोद ने सिर्फ चाय पी। अभी वे लोग आगे बढ़ने की तैयारी कर ही रहे थे कि तभी विनोद गिर पड़ा। अस्पताल ले जाया गया, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया। यह सब कुछ हाईवे पर हुआ और उसकी पत्नी सविता और दोनों बच्चों ने अपनी आंखों से मौत का वह मंजर देखा। वहां के लोगों ने पिकअप की व्यवस्था कराई। इसके बाद उसके साथ आ रहे छोटा भाई पिकअप से रातभर सफर कर रविवार सुबह शव लेकर गांव पहुंचा। वाहन घर के सामने दरवाजे पर जैसे ही रुका परिवारीजनों में कोहराम मच गया। उनका विलाप सुन सभी हर किसी का कलेजा फट रहा था।
विनोद का शव रविवार की सुबह 7.50 बजे घर पहुंचा। करीब नौ बजे अंतिम यात्रा निकली। शवयात्रा में गांव के अंदर तो काफी भीड़ रही पर जैसे ही गांव के बाहर सड़क पर पहुंची, सिर्फ 25 लोग ही साथ दिखाई दिए। लॉकडाउन और प्रशासन की अपील का पालन करते हुए बाकी सारे लोग घरों को वापस हो लिए। बांसी राप्ती तट पर अंतिम संस्कार के लिए गांव से शव को कंधे पर रखकर दो किलोमीटर दूर तिलौरा चौराहा तक ले जाया गया। वहां खड़ी ट्रैक्टर-ट्रॉली पर शव रखकर अंतिम संस्कार करने के लिए बांसी के राप्ती नदी तट पर ले जाया गया। करीब 10:30 बजे अंतिम संस्कार किया गया। विनोद के पिता राममिलन तिवारी ने मुखाग्नि दी। विनोद के बड़े बेटे की उम्र महज 10 वर्ष होने की वजह से उनसे आग नहीं दिलाई गई। शवयात्रा से लेकर दाह संस्कार तक लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने का भरसक प्रयास किया।
शव से लिपटकर चीत्कार उठी सावित्री
इससे पहले परिवारीजन शवयात्रा की तैयारी कर निकल रहे थे। अर्थी उठाकर अभी कंधे पर भी नहीं रखी थी कि विनोद की पत्नी सावित्री पति के शव से लिपटकर दहाड़ें मारकर रोने लगी। उसे रोता देख बुजुर्ग से लेकर बच्चों की भी आंखें बरसने लगीं। सविता की चीत्कार हर किसी का कलेजा चीर रही थी। चाह कर भी उसे न तो कोई दिलासा दे पा रहा था और न अपने आंसू रोक पा रहा था।