आज जानकी नवमी पर्व है। यह सनातन संस्कृति का महत्वपूर्ण उत्सव है। क्योंकि इसी दिन राजा जनक की पुत्री एवं भगवान श्रीराम की पत्नि माता सीता का प्राकट्य हुआ था। सनातन संस्कृति में माता सीता अपने त्याग एवं समर्पण के लिए पूजनीय हैं। जानकी नवमी को सीता नवमी (Sita Navmi 2020) पर्व भी कहते हैं। इस पावन उत्सव पर माता सीता की पूजा की जाती है एवं व्रत उपवास रखा जाता है।
जानकी नवमी 2020 का मुहूर्त
सीता नवमी मुहूर्त – सुबह 10:58 से दोपहर 01:38 बजे तक (2 मई 2020)
कुल अवधि – 02 घंटे 40 मिनट
नवमी तिथि प्रारंभ – दोपहर 01:26 बजे से (01 मई 2020)
नवमी तिथि समाप्त – सुबह 11:35 तक (02 मई 2020
जानकी नवमी व्रत विधि
सुबह स्नान करने के घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
दीप प्रज्वलित करने के बाद व्रत का संकल्प लें।
मंदिर में देवताओं को स्नान करवाएं।
अगर घर में गंगा जल है तो, देवताओं को स्नान वाले जल में गंगा जल मिलाएं।
भगवान राम और माता सीता का ध्यान करें।
शाम को माता सीता की आरती के साथ व्रत खोलें।
भगवान राम और माता सीता को भोग लगाएं।
माता सीता की जन्म कथा
वाल्मिकी रामायण के अनुसार, एक बार मिथिला में पड़े भयंकर सूखे से राजा जनक बेहद परेशान हो गए थे, तब इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए उन्हें एक ऋषि ने यज्ञ करने और धरती पर हल चलाने का सुझाव दिया। ऋषि के सुझाव पर राजा जनक ने यज्ञ करवाया और उसके बाद राजा जनक धरती जोतने लगे। तभी उन्हें धरती में से सोने की खूबसूरत संदूक में एक सुंदर कन्या मिली। राजा जनक की कोई संतान नहीं थी, इसलिए उस कन्या को हाथों में लेकर उन्हें पिता प्रेम की अनुभूति हुई। राजा जनक ने उस कन्या को सीता नाम दिया और उसे अपनी पुत्री के रूप में अपना लिया।
माता सीता का विवाह भगवान श्रीराम के साथ हुआ। लेकिन विवाह के पश्चात वे राजसुख से वंचित रहीं। विवाह के तुरंत बाद 14 वर्षों का वनवास और फिर वनवास में उनका रावण के द्वारा अपहरहण हुआ। लंका विजय के बाद जब वे अपने प्रभु श्रीराम के साथ अयोध्या वापस लौटीं तो उनके चरित्र पर सवाल उठाए गए। यहां तक कि उन्हें अग्नि परीक्षा भी देनी पड़ी, परंतु फिर भी उनके भाग्य में वो सुख नहीं मिल पाया, जिसकी वे हकदार थीं। उन्हें अयोध्या से बाहर छोड़ दिया गया। जंगल में रहकर उन्होंने अपने पुत्रों लव-कुश को जन्म दिया और अकेले ही उनका पालन-पोषण किया। अंत में मां जानकी धरती मां के भीतर समा गईं। सनातन संस्कृति में माता सीता अपने त्याग एवं समर्पण के लिए सदा के लिए अमर हो गईं।