प्रयागराज। लखनऊ में 19 दिसंबर को सीएए के विरोध में हिंसा के दौरान सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने वाले आरोपियों की फोटोयुक्त होर्डिंग्स लगाने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई है। चीफ जस्टिस गोविंद माथुर ने मामले को स्वत: संज्ञान लिया। अवकाश के दिन रविवार सुबह 10 बजे चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस रमेश सिन्हा की पीठ ने सुनवाई की। संयुक्त बेंच ने कहा- कथित सीएए प्रोटेस्टर्स के पोस्टर लगाने की राज्य की कार्रवाई अत्यधिक अन्यायपूर्ण है और यह संबंधित व्यक्तियों की पूर्ण स्वतंत्रता पर एक अतिक्रमण है। दोपहर 3 बजे तक के लिए सुनवाई टाल दी गई है।
राज्य सरकार के अफसरों से बेंच ने कहा- ऐसा कोई भी कार्य नहीं किया जाना चाहिए, जिससे किसी के दिल को ठेस पहुंचे। पोस्टर लगाने पर बेंच ने कहा कि यह राज्य के प्रति भी अपमान है और नागरिक के प्रति भी। यह भी कहा- आपके पास 3 बजे तक का समय है। कोई जरूरी कदम उठाना हो तो उठा सकते हैं। इस मामले में चीफ जस्टिस ने लखनऊ के पुलिस कमिश्नर और डीएम को तलब किया था। लेकिन सुनवाई दोपहर 3 बजे तक के लिए टाल दी गई है। केंद्र सरकार की तरफ से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पक्ष रखेंगे। वहीं, पुलिस कमिश्नर की तरफ से डीसीपी नॉर्थ और डीएम की तरफ से एडीएम को भेजा गया है।
मामले में चीफ जस्टिस की बेंच ने लखनऊ के डीएम और पुलिस कमिश्नर से पूछा था कि वह हाईकोर्ट को बताएं कि कानून के किस प्रावधान के तहत लखनऊ में इस प्रकार के पोस्टर सड़क पर लगाए जा रहे हैं। कोर्ट ने आदेश में कहा है कि पोस्टर्स में इस बात का कहीं जिक्र नहीं है कि किस कानून के तहत पोस्टर्स लगाए गए हैं। हाईकोर्ट का मानना है कि पब्लिक प्लेस पर संबंधित व्यक्ति की अनुमति बिना उसका फोटो या पोस्टर लगाना गलत है। यह राइट टू प्राइवेसी का उल्लंघन है।