वाशिंगटन। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन दुनिया के 100 से ज्यादा लोकतांत्रिक देशों की शिरकत वाला सम्मेलन करने की तैयारी में हैं। यह सम्मेलन दुनिया में लोकतंत्र की भावना मजबूत करने के लिए आयोजित किया जाएगा। यह सम्मेलन दुनिया भर में लोकतंत्र को कमजोर करने और अधिकारों व स्वतंत्रता कम करने वाले प्रयासों के बीच होगा। दुनिया के लोकतांत्रिक देशों को एक मंच पर लाकर लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने का वादा बाइडन ने चुनाव प्रचार के दौरान किया था।
इस वर्चुअल समिट (सम्मेलन) में शामिल होने वाले नेताओं को लेकर कुछ आलोचकों ने सवाल उठाए हैं। कहा है कि कुछ ऐसे नेताओं को आमंत्रित किया गया है जिन पर सत्ता पर कब्जा करने का आरोप है। उन्होंने खुद को बनाए रखने के लिए व्यवस्था को सुविधानुसार बदल डाला है। इससे लोकतांत्रिक मूल्य और स्वतंत्रता प्रभावित हुई है।
लोकतंत्र और मानवाधिकारों के लिए कार्य करने वाली संस्था फ्रीडम हाउस की उपाध्यक्ष एनी बोयाजियान ने कहा है कि अगर आयोजित होने वाली समिट से वास्तव में कुछ प्राप्त करना है तो अमेरिका को लोकतंत्र और मानवाधिकारों पर अपने संकल्पों को लेकर आगे बढ़ना होगा जबकि नौ और दस दिसंबर को आयोजित होने वाली इस समिट के संबंध में बाइडन प्रशासन का कहना है कि यह बड़े उद्देश्यों को प्राप्त करने के सफर की शुरुआत होगी।
प्रतिभागियों की सलाह के अनुसार लोकतंत्र की मजबूती के लिए भविष्य में कई कदम उठाए जाएंगे। राष्ट्रपति बाइडन ने फरवरी में विदेश नीति के संबंध में पहला भाषण दिया था। उसमें अमेरिका को वैश्विक नेतृत्व के रास्ते पर वापस लाने की घोषणा की गई थी। माना जा रहा है कि लोकतंत्र पर आयोजित होने वाला यह सम्मेलन इसी दिशा का कदम है। इसके जरिये अमेरिका हाल के वर्षो में बने चीन के कद को कम करने का प्रयास करेगा।
आमंत्रित देशों की सूची में भारत, फ्रांस और स्वीडन जैसे मजबूत लोकतांत्रित परंपरा वाले देश हैं तो फिलीपींस और पोलैंड जैसे नए लोकतांत्रिक देश भी हैं, जहां लोकतंत्र को खतरा बताया जा रहा है। सम्मेलन में थाइलैंड और फिलीपींस जैसे अमेरिका के मित्र देशों को आमंत्रित नहीं किया गया है। सम्मेलन में पश्चिम एशिया के ज्यादातर मित्र देशों को आमंत्रित नहीं किया गया है। केवल इजरायल और इराक को न्योता मिला है। अमेरिका के नाटो में सहयोगी तुर्की और खास दोस्त मिस्र को भी नहीं बुलाया गया है।