जम्मू-कश्मीर। ठंड ने जम्मू-कश्मीर में पूरी तरह पांव पसार लिए हैं। अमूमन सर्दियों में खासकर दिसंबर माह के दौरान जम्मू कश्मीर में सियासत और खेल, दोनों संबंधित गतिविधियां लगभग ठंडी रहती हैं, खैर इस बार ऐसा नहीं है। गर्मियों में अलगाववादियों की सियासत और हिंसक प्रदर्शनों से गर्म रहने वाले जम्मू-कश्मीर में बीते पांच माह के दौरान बहुत कुछ बदला है।
प्रशासनिक और राजनीतिक व्यवस्था के बदलाव के बीच सियासत भी बदली है। पांच अगस्त के बाद से जिस तरह से जम्मू-कश्मीर के हालात ने करवट बदली, जम्मू-कश्मीर दो केंद्र शासित राज्यों में पुनर्गठित हुआ, उसके बाद तो कई राजनीतिक पंडित कहने लगे थे कि गर्मियां तो गर्मियां इस बार सर्दियां भी खूब गर्म रहेंगी। हालात पूरी तरह बेकाबू हो जाएंगे।
कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और पीपुल्स कांफ्रेंस जैसे संगठन जो अलगाववादियों और मुख्यधारा की सियासत के बीच भारत का झंडा थामकर एक बफर जोन प्रदान करते हैं, वे पूरी तरह गायब हो जाएंगे। मुख्यधारा की सियासत पूरी तरह समाप्त हो जाएगी, स्थानीय युवकों के हाथ में सिर्फ क्लाशनिकोव राइफल और पत्थर नजर आएंगे। शुरू में कुछ समय तक ये सभी आशंकाएं सही साबित होती नजर आने लगी थीं, लेकिन दिन बीतने के साथ ये आशंकाएं धीरे-धीरे मिटने लगीं। स्थानीय युवाओं के हाथ में क्लाशनिकोव और पत्थर नहीं रहे, वे खेल के मैदान और स्कूलों में नजर आ रहे हैं।
आइलीग फुटबॉल प्रतियोगिता जिसके पहले दो मैच रद हो चुके हैं, 26 दिसंबर को होने वाले मुकाबले का युवा बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। वे रियल कश्मीर फुटबॉल क्लब के खिलाड़ियों को चीयर करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। स्थानीय प्रशासन और सेना तथा पुलिस द्वारा आयोजित खेल प्रतियोगिताओं में ठंड के बावजूद युवा हिस्सा ले रहे हैं।
स्थानीय युवाओं का अलगाववाद और आतंकवाद से पूरी तरह उदासीन रवैया अपनाया जाना जम्मू-कश्मीर में बदलाव का प्रतीक है और शाायद यही कारण है कि कल तक अनुच्छेद 370 की बहाली तक किसी भी तरह की सियासी गतिविधि से दूर रहने का दावा करने वाली नेशनल कांफ्रेंस ने भी धीरे-धीरे अपनी सियासी गतिविधियां बढ़नी शुरू कर दी है।
सियासत का रुख पूरी तरह मुख्यधारा की तरफ
दो दिन पहले नेशनल कांफ्रेंस के वरिष्ठ नेता और पूर्व एमएलसी देवेंद्र राणा द्वारा जारी यह बयान कि सभी वरिष्ठ राजनीतिक नेताओं को रिहा किया जाए ताकि जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक गतिविधियां तेज हों। साथ ही उनकी ही पार्टी के सांसद हसनैन मसूदी का यह कहना कि सभी राजनीतिक दल अपने नेताओं की रिहाई के लिए एकजुट होकर न्यायालय जाने पर विचार कर रहे हैं, बताता है कि जिस बफर जोन के पूरी तरह समाप्त होने की बात की जा रही थी, वह समाप्त तो हुआ है, पर उसने अपनी सियासत का रुख पूरी तरह मुख्यधारा की तरफ मोड़ना शुरू कर दिया है।