लोकआस्था के महापर्व छठ की पूजा शुरू है। आरोग्य, सौभाग्य व संतान की खातिर भगवान भास्कर और ब्रह्मा की मानस पुत्री छठी मइया की आराधना की जाती है। व्रती कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन निर्जला व निराहार रहकर छठी मइया की पूजा करेंगे। छठ महापर्व को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं।
छठी मइया की कृपा से मृत बालक जी उठा वर्षकृत्य के एक आख्यान के अनुसार प्रियव्रत नामक एक राजा थे। उन्हें कोई संतान नहीं थी। ऋषि कश्यप की सलाह पर उन्होंने पुत्रसृष्ठि यज्ञ किया। यज्ञ के बाद उन्हें संतान की प्राप्ति तो हुई पर वह मृत पैदा हुआ।
अपने मृत बालक को सीने से लगाए राजा एकटक आसमान की ओर देखते रहे। उनके सीने से मृत बालक को हटाने की हिम्मत किसी को नहीं हो रही थी। इस बीच आसमान से एक दिव्य देवी प्रकट हुईं।
यह और कोई नहीं षष्ठी देवी थी। उन्होंने राजा से कहा कि मैं बालकों की देवी हूं। मैं ब्रह्माजी की मानस पुत्री हूं। मेरे आशीर्वाद से नि:संतानों को भी संतान सुख मिलता है। इसके बाद राजा ने उनकी स्तुति की। उनके आशीर्वाद से राजा का मृत बालक जीवित हो उठा।
छठी मइया ने राजा से कहा कि पृथ्वी पर ऐसी व्यवस्था हो कि सब उनकी पूजा करें। राजा की आज्ञा पर हर शुक्ल पंचमी को षष्ठी देवी की पूजा होने लगी। कार्तिक व चैत्र मास में भी छठ पूजा होने लगी।