नई दिल्ली। सत्तर साल से कोर्ट में अटके अयोध्या राम जन्मभूमि पर मालिकाना हक के ऐतिहासिक मुकदमें पर सुप्रीम कोर्टला आज सुनाएगा। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की पीठ सुबह साढे दस बजे अपना फैसला सुनाएगी
40 दिन की मैराथन सुनवाई के बाद 16 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था
सुप्रीम कोर्ट ने राजनैतिक, धार्मिक और सामाजिक रुप से संवेदनशील इस मुकदमें की 40 दिन तक मैराथन सुनवाई करने के बाद गत 16 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। अयोध्या मामले की सुनवाई करने वाली पांच सदस्यीय पीठ में शामिल सभी जजों की सुरक्षा बढ़ाई गई है। बता दें कि प्रधान न्यायाधीश 17 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
इस मुकदमें में कहा गया है कि बाबर के आदेश पर 1528 में अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मस्जिद का निर्माण हुआ था। यह विवादित इमारत और स्थान हमेशा हिन्दू और मुसलमानों के बीच विवाद का मुद्दा रहा। हिन्दू विवादित स्थल को भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं और वहां अधिकार का दावा करते हैं। जबकि मुसलमान वहां बाबरी मस्जिद होने के आधार पर मालिकाना हक की मांग करते रहे। 6 दिसंबर 1992 को कुछ असामाजिक तत्वों ने विवादित ढांचा ढहा दिया था। हालांकि तब भी यह मुकदमा अदालत में लंबित था। चार मूलवाद और चौदह अपीलें इस मुकदमें में मुख्यत: चार मूलवाद थे। जिन पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को फैसला सुनाया था।
पहला मुकदमा गोपाल सिंह विशारद का था जिसने 1950 में राम जन्मभूमि पर रिसीवर नियुक्त होने के बाद मुकदमा दाखिल कर पूजा अर्चना का अधिकार मांगा था। इस मुकदमें की शुरूआती सुनवाई में ही कोर्ट ने रामलला की पूजा अर्चना जारी रखने का आदेश देते हुए वहां यथास्थिति कायम रखने का निर्देश दिया था जो लगातार जारी रहा।
दूसरा मुकदमा निर्मोही अखाड़ा ने 1959 में दाखिल किया और इस मुकदमें में निर्मोही अखाड़ा ने रामलला के सेवादार होने का दावा करते हुए पूजा प्रबंधन और कब्जा मांगा था।
तीसरा मुकदमा 1961 में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने दाखिल किया। मालिकाना हक की मांग का यह पहला मुकदमा था। जिसमें पूरी जमीन को वक्फ की संपत्ति बताते हुए विवादित ढांचे को मस्जिद घोषित करने की मांग की गई है।
चौथा मुकदमा भगवान श्रीराम विराजमान और जन्मस्थान की ओर से निकट मित्र देवकी नंदन अग्रवाल ने दाखिल किया था। इस मुकदमें में जन्मस्थान को अलग से पक्षकार बनाया गया था। इसमें विवादित भूमि को भगवान राम का जन्मस्थान बताते हुए भगवान राम विराजमान को पूरी जमीन का मालिक घोषित करने की मांग की गई है।
रामलला की ओर से मुकदमा दाखिल करने वाले देवकी नंदन अग्रवाल इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश थे। इस बीच 1950 में रामचंद्र परमहंस दास ने भी एक मुकदमा दाखिल किया था जिसमें पूजा दर्शन का अधिकार मांगा गया था लेकिन बाद में यह मुकदमा वापस ले लिया गया।दोनों पक्षों की ओर से जमीन पर दावा करते हुए कोर्ट से उन्हें मालिक घोषित करने की मांग की गई है। हिन्दू पक्ष विशेष तौर पर रामलला की और से कहा गया था कि बाबर ने राम जन्मस्थान मंदिर तोड़कर वहां मस्जिद बनवाई थी और उस मस्जिद में मंदिर के अवशेषों का इस्तेमाल किया गया था। राम जन्मस्थान पर हिन्दुओं की अगाध आस्था है और हिन्दू हमेशा से वहां पूजा करते चले आ रहे हैं।