लखनऊ । भगवान श्रीराम की यश गाथा तो कई ग्रंथ और पुस्तकें सुनाती हैं, लेकिन तमाम देश अभी उसे सहज स्वीकार नहीं कर पाए हैं। अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद अब अयोध्या शोध संस्थान भी बड़ी भूमिका में आ रहा है। संस्थान दुनियाभर में अकादमिक गतिविधियां कर श्रीराम से जुड़े तथ्यों को जुटाएगा और उनके दस्तावेज तैयार करेगा। उन तथ्यों पर तार्किक संवाद भी होगा, ताकि विश्व उसे स्वीकार करे और कहे ‘जय श्रीराम।’
भगवान राम का संबंध सिर्फ भारत से ही नहीं, बल्कि उनके वनगमन और अन्य कार्यकलापों के दायरे में कई देश आते हैं। अयोध्या पर फैसला आने के बाद से सरकार का यह प्रयास भी है कि श्रीराम का संबंध धरती के जिस-जिस भू-भाग से रहा है, वहां तक उनका यशगान होना चाहिए। इसी आधार पर अयोध्या शोध संस्थान ने दुनिया को चार भागों में बांटा है। दक्षिण पूर्व एशिया, मध्य पूर्वी देश, कैरेबियन देश और यूरोप। अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक योगेश प्रताप सिंह ने बताया कि अभी तक संस्थान विभिन्न माध्यमों से श्रीराम से संबंधित तथ्य जुटाकर सहेजता, प्रदर्शित करता था। अब तय किया गया है कि इन सभी देशों में शोध कर तथ्य जुटाए जाएंगे। उन तथ्यों के दस्तावेज तैयार किए जाएंगे।
इसके साथ ही अकादमिक गतिविधियां शुरू की जाएंगी। वहां के विशेषज्ञ यहां बुलाए जाएंगे और यहां के वहां जाएंगे। तर्क-मंथन कर उन तथ्यों को बताया और समझाया जाएगा कि उस भूभाग या देश से भगवान श्रीराम का क्या संबंध था। इससे भारत सांस्कृतिक-धार्मिक विरासत दुनिया में पहुंच सकेगी।
अब तक अयोध्या शोध संस्थान इराक, इटली और होंडुरास से कुछ संदर्भ-तथ्य जुटा चुका है। उनको दस्तावेज का रूप देने के लिए शासन ने बजट को भी मंजूरी दे दी है।