ढाका। पाकिस्तान से आजादी के उपलक्ष्य में बांग्लादेश ने सोमवार को अपना 49वां विजय दिवस मनाया। परेड के दौरान बांग्लादेश की सेना ने अपने कौशल का प्रदर्शन किया। पहली बार इस परेड में भारतीय सेना के बैंड ने भी हिस्सा लिया। ‘सारे जहां से अच्छा’ की धुन पर जब भारतीय बैंड कदमताल कर रहा था तो दर्शक दीर्घा का उत्साह देखते ही बन रहा था।
परेड के दौरान 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान भारत की भूमिका के बारे में भी बताया जा रहा था। दर्शक दीर्घा में एनसीसी के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल राजीव चोपड़ा के साथ 20 एनसीसी कैडेटों का प्रतिनिधिमंडल भी मौजूद था।
बांग्लादेश के राष्ट्रपति एम अब्दुल हमीद ने परेड की सलामी ली और परेड कमांडर मेजर जनरल मोहम्मद अकबर हुसैन के साथ खुली जीप में सवार होकर सुरक्षा स्थितियों की समीक्षा की। इस दौरान प्रधानमंत्री शेख हसीना के साथ-साथ मंत्री और विभिन्न देशों के राजनयिक भी मौजूद थे। बांग्लादेश में भारतीय उच्चायुक्त रीवा गांगुली दास भी मेहमानों में शामिल थीं।
वर्ष 1971 के पहले बांग्लादेश, पाकिस्तान का हिस्सा था जिसे पूर्वी पाकिस्तान कहते थे। बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई के समय मुक्ति वाहिनी का गठन किया गया था। 1970 में यह आंदोलन चरम पर था।
1948 में उर्दू को लेकर बांग्लाभाषियों का उबल पड़ा था आक्रोश
पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाने जाने वाले बांग्लादेश में वर्ष 1948 में यह तल्खी तब और बढ़ गई, जब पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने एलान किया कि देश की राष्ट्रभाषा उर्दू होगी। इस पर पहले से ही नाराज चल रहे पूर्वी पाकिस्तान के बांग्लाभाषियों का आक्रोश उबल पड़ा। इसके बाद संघर्ष लगातार बढ़ता गया। 1958 से 1962 के बीच तथा 1969 से 1971 के बीच पूर्वी पाकिस्तान मार्शल लॉ के अधीन रहा।
1970-71 में पाकिस्तान के संसदीय चुनावों में पूर्वी पाकिस्तान में अवामी लीग ने बड़ी संख्या में सीटें जीतीं और सरकार बनाने का दावा किया, लेकिन पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के जुल्फिकार अली भुट्टो को वह बात नागवार गुजरी। पश्चिमी पाकिस्तान के हुक्मरानों ने सैनिक अत्याचार से उन्हें कुचलना शुरू कर दिया, तब वही बलिदानी चेतना सशस्त्र मुक्ति संग्राम के रूप में प्रकट हुई।