उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद कोर्ट को बताया है कि 20 और 21 दिसंबर 2019 को नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन के दौरान 22 लोगों की मौत हुई और 83 लोग घायल हुए थे। साथ ही कोर्ट को यह भी बताया गया कि करीब 883 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें से 561 को जमानत मिल चुकी है और 322 अब भी जेल में हैं।
उत्तर प्रदेश में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध के दौरान कथित पुलिस उत्पीड़न के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने बताया कि सीएए के खिलाफ 20 और 21 दिसंबर, 2019 को विरोध के दौरान राज्य में कुल 22 लोगों की मौत हुई और 83 लोग घायल हुए, जबकि इस दौरान 45 पुलिसकर्मी भी घायल हुए।
इन घटनाओं के संबंध में रिपोर्ट प्रस्तुत कर गोयल ने कोर्ट को बताया कि दंगा करने और सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के लिए 883 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिसमें से 561 लोगों को जमानत मिल चुकी है। शेष 332 में से 111 लोगों द्वारा जमानत की अर्जी दी गई जो विभिन्न अदालतों में लंबित है।
मनीष गोयल ने कोर्ट को यह भी बताया है कि प्रदर्शन में घायल सभी लोगों को उचित मेडिकल सुविधा प्रदान की गई थी, जिनमें 45 पुलिसकर्मी भी शामिल थे। बता दें कि मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा की पीठ ने याचिकाकर्ताओं और राज्य सरकार दोनों को ही अपने हलफनामे और दस्तावेज दाखिल करने को कहा।
गोयल ने बताया कि पुलिसकर्मियों के खिलाफ कुल 10 शिकायतें प्राप्त हुईं हैं जिनकी विवेचना की जा रही है। इन याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि प्रदर्शनकारियों पर अत्यधिक बल प्रयोग किया गया जिससे कई लोगों की मौत हो गई और कई गंभीर रूप से घायल हुए। पुलिस कार्रवाई अन्यायपूर्ण और प्रदर्शनकारियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। याचिकाओं में यह आरोप भी लगाया गया है कि घायल व्यक्तियों का सही ढंग से इलाज नहीं किया गया और अधिकारी प्रदर्शन के दौरान मारे गए लोगों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट उनके परिजनों को उपलब्ध नहीं करा रही है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध के दौरान कथित पुलिस उत्पीड़न के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए 18 मार्च की तिथि सोमवार को तय की।