भारत सरकार अब नए संसद भवन के निर्माण को औपचारिक प्रक्रिया शुरू कर चुकी है, 2022 का संसद सत्र नए भवन में ही होगा। आइये अब चंबल के बीहड़ों का रुख करें, कहा जाता है कि यहां मौजूद भव्य स्थापत्य को देख ही लुटियन ने वह भवन बनाया, जो भारतीय संसद भवन बना। जिसे डकैतों के खौफ से संरक्षण मिला, वह विरासत देश-दुनिया में पहचान बना रही है। वर्ष 2000 के बाद से भारतीय पुरातत्व विभाग और मध्य प्रदेश सरकार के प्रयासों से मुरैना, मप्र के निकट स्थित यह स्थल लगातार सुर्खियों में है।
चंबल घाटी को डकैतों के आतंक के लिए जाना जाता रहा है। लेकिन डकैतों के आंतक के पीछे छिपे यहां के गौरवशाली इतिहास को अब देशभर में पहचान मिल रही है। जिन डकैतों के कारण चंबल कुख्यात रही, उन्हीं डकैतों के भय ने इस शानदार विरासत को सहेज कर रखा। यह वह विरासत है, जो किसी को भी हैरत में डाल सकती है। विस्तृत शिवमंदिर शृंखला और चौसठ योगिनी मंदिर के रूप में ऐसी गोलाकार संरचना, जिसे भारतीय संसद भवन की प्रेरणा बताया जाता है, यहां मौजूद है। बिना किसी प्रचार प्रसार के ही इन स्मारकों की ख्याति देश भर में फैल चुकी है
लंबे दायरे में फैले मुरैना के बटेश्वरा शिव मंदिर समूह ने इस बात को स्थापित किया है कि संसद भवन से कई सदी पहले ही इसी तरह की हू-ब-हू संरचना चंबल घाटी के जंगलों में बनाई जा चुकी थी। खुद भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग अपने दस्तावेजों में इस बात का उल्लेख कर चुका है कि मितावली मंदिर, बटेश्वरा और नरेश्वर शिवमंदिर समूह जैसी संरचनाएं और कहीं नहीं मिलतीं।
साल 2000 तक मुरैना जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर पथरीली चट्टनों और कटीली झाड़ियों के बीच छिपी यह संरचनाएं किसी की नजर में नहीं आई थीं। चंबल के डकैतों के डर से इन जंगलों में कभी कोई बाहरी व्यक्तिनहीं पहुंचा। यही वजह रही कि पानी के वेग और भूचालों को सहते हुए भी यह संरचनाएं मूर्ति तस्करों और खनन माफिया से बची रहीं।