नई दिल्ली। भारत को कोरोना वायरस महामारी से लड़ते हुए दो महीनों से ज़्यादा का समय हो चुका है। इससे लड़ने के लिए करीब तीन महीने सख्ती से लॉकडाउन रहा, लेकिन हालात सुधरने की जगह और बिगड़ते जा रहे है कोरोना वायरस कितना ख़तरनाक है। आप इस बात से अंदाजा लगा सकते है कि भारत में कोरोना वायरस की संक्रमित मरीज़ों का आंकड़ा दो लाख के करीब पहुंच गया है। मरने वालो की संख्या पांच हज़ार के ऊपर पहुच चुकी है इस वायरस के फैलने से भी ज़्यादा ख़तरनाक ये है कि कई कोरोना वायरस पॉज़ीटिव लोग टेस्ट में नेगेटिव पाए जाते हैं। टेस्ट का ग़लत आना न सिर्फ मरीज़ों के लिए खॉतरनाक है बल्कि उन लोगों के लिए भी है जिन्हें मरीज़ अनजाने में संक्रमित कर देते हैं। टेस्ट के ग़लत नतीजे आने का मतलब ये है कि एक व्यक्ति के कोरोना वायरस से संक्रमित होने पर भी टेस्ट में वायरस को न पकड़ पाना।
आपको बता दें अब तक कोरोना वायरस का पता लगाने के लिए दो तरह के टेस्ट उपलब्ध हैं, पहला RT-PCR टेस्ट यानी रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पॉलीमेरेस चेन रिएक्शन टेस्ट ऐसी स्थिति में बेस्ट है। RT-PCR टेस्ट में मरीज़ के नाक और मुंह के काफी अंदर से सैम्पल लिया जाता है। और दूसरा एंटीबॉडी टेस्ट है जिसमे ब्लड सैम्पल की मदद से संक्रमित व्यक्ति की जांच की जाती है।
टेस्ट के नतीजे ग़लत क्यों आते हैं?
कोविड-19 के टेस्ट के साथ सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि इसे बिना अच्छी तरह टेस्ट किए इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके पीछे का कारण तेज़ी से फैलता कोरोना वायरस का संक्रमण है, जिसने वैज्ञानिकों को ज़्यादा समय न देते हुए विशेषज्ञों ने इसे जल्दबाज़ी में बनाया है। रिसर्च में भी पाया गया है कि 30 प्रतिशत लोग टेस्ट में नेगेटिव पाए जाते हैं,ऐसे लोगो के लिए सरकार की तरफ से ऐसे लोगों के लिए कोई सुविधा नहीं है।
एक्सपर्ट्स का यह भी मानना है कि टेस्ट के लिए जो सैम्पल इकट्ठा करने का तरीका है, उसकी वजह से भी टेस्ट नेगेटिव आ सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, अगर नाक या मुंह के काफी अंदर से सैम्पल न लिया जाए, तो टेस्ट नेगेटिव आएगा क्योंकि वायरस काफी अंदर जाता है। नाक के बाद वायरस अगर फेफड़ों में पहुंच गया है, तो नाक की कोशिकाओं में वायरस काफी कम मात्रा में मिलेगा, जिसकी नतीजा नेगेचिव ही आएगा।