उत्तर प्रदेश पॉवर कार्पोरेशन (यूपीपीसीएल) में हुए पीएफ घोटाले की जांच कर रहे ईओडब्ल्यू की नजर अब ब्रोक्रर फर्मों की भूमिका पर टिक गई है। जांच में पता चला है 14 ब्रोकर फर्मों के माध्यम से डीएचएफएल में निवेश किया गया था। अब इन फर्मों से आरोपी अफसरों के कनेक्शन की जांच हो रही है।
ईओडब्ल्यू पॉवर कार्पोरेशन के तत्कालीन चेयरमैन एवं मौजूदा समय में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत संजय अग्रवाल से भी पूछताछ कर सकती है।
सूत्रों के अनुसार ईओडब्ल्यू की जांच में जिन 14 ब्रोकर फर्मों का नाम सामने आया है, उनमें से सिर्फ दो ब्रोकर फर्में ही ऐसी हैं जो अन्य कंपनियों के लिए भी काम करती हैं। शेष 12 फर्मों ने यूपीपीसीएल के अलावा कोई और काम नहीं किया था। ये सभी फर्में पश्चिमी उत्तर प्रदेश या उससे सटे पड़ोसी राज्यों के जिले की हैं। यह भी पता चला कि आदमी एक ही है और दो-तीन फर्में चला रहा है। एक फर्म का तो पता भी गलत पाया गया। अन्य फर्मों की अभी जांच चल रही है। इन फर्मों से आरोपी अफसरों के संबंधों की भी जांच हो रही है। इसके लिए ईओडब्ल्यू तत्कालीन सचिव (ट्रस्ट) प्रवीण कुमार गुप्ता के बेटे की तलाश है।
वापस जेल भेजे गए दोनों आरोपी अफसर:कस्टडी रिमांड पूरी होने के कारण दोनों अभियुक्त प्रवीण कुमार गुप्ता व सुधांशु द्विवेदी शुक्रवार को वापस भेज दिए गए। तीसरे अभियुक्त एपी मिश्र की कस्टडी रिमांड रविवार को सुबह 10 बजे पूरी हो रही है। अभियुक्तों से पूछताछ में पता चला कि डीएचएलएफ में निवेश का फैसला लेने के लिए भी ट्रस्ट की विधिवत बैठक नहीं की गई थी। फैसले से संबंधित पत्रावली पर सभी ने अलग-अलग हस्ताक्षर किए थे। इस पर तत्कालीन एमडी एपी मिश्र के हस्ताक्षर विशेष आमंत्रित सदस्य के तौर पर हैं। वह ट्रस्ट के सदस्य नहीं थे।
ईओडब्ल्यू के एक अफसर ने कहा कि इस मामले से संबंधित सभी अफसरों से निवेश के फैसले के बारे में पूछा जरूर जाएगा। इससे पहले दिसंबर 2016 में पीएनबी हाउसिंग में किया गया निवेश भी नियम विरुद्ध था। पीएनबी हाउसिंग में जीपीएफ व सीपीएफ के 50-50 करोड़ रुपये निवेश किया गया था।