सानिया मिर्जा के बाद अंकिता रैना ने विश्व में भारतीय महिला टेनिस की अगुआई की है। चाहे सिंगल्स हो या डबल्स, इस गुजराती बाला ने अपने खेल से सबको प्रभावित किया है जिसकी बदौलत वह आज देश की नंबर एक महिला टेनिस खिलाड़ी हैं। हालांकि, 2009 से पेशेवर स्तर पर खेल रहीं अंकिता का मानना है कि एक टूर्नामेंट जीतने से ग्रैंडस्लैम स्तर के खिलाड़ी तैयार नहीं होते हैं और इसके लिए लगातार अच्छा प्रदर्शन करना पड़ता है। भविष्य और वर्तमान टेनिस को लेकर एशियन गेम्स की कांस्य पदक विजेता अंकिता रैना से विकास पांडेय ने विस्तार से चर्चा की। पेश है उस बातचीत के प्रमुख अंश :
-ऑस्ट्रेलियन ओपन के साथ टेनिस की दुनिया में नए साल की शुरुआत हो रही है। 2020 के लिए आपने कौन-कौन से लक्ष्य निर्धारित किए हैं?
–मैं ग्रैंडस्लैम टूर्नामेंट के मुख्य ड्रॉ में खेलना चाहती हूं। बीते साल मैंने पूर्व यूएस ओपन चैंपियन सामंथा स्टोसुर जैसी दिग्गज खिलाड़ी को हराया था जिससे मेरा मनोबल काफी बढ़ा है। मेरे खेल में सुधार हुआ है। मेरा लक्ष्य इस साल दुनिया की शीर्ष-100 खिलाडि़यों में आने का होगा।
विश्व टेनिस में भारत ने डबल्स में काफी सफलताएं हासिल की हैं, लेकिन महिला सिंगल्स में हमारा स्तर कुछ खास नहीं रहा है। इसकी मुख्य वजहें क्या हैं ?
–मैं आपकी बात से इत्तेफाक नहीं रखती। मुझे लगता है कि सिंगल्स में भी हमारे पास अच्छा करने की क्षमता है। जहां तक पिछड़ने की बात है तो इसके लिए कुछ चीजें जिम्मेदार हैं। टेनिस एक महंगा खेल है। ऐसे में हर खिलाड़ी को आगे बढ़ने के लिए आर्थिक मदद की जरूरत होती है। मैं खुद को सौभाग्यशाली समझती हूं कि मुझे सही समय पर गुजरात खेल प्राधिकरण का साथ मिला। ऐसा नहीं है कि आप एक टूर्नामेंट जीत गए तो आप ग्रैंडस्लैम में पहुंच जाएंगे। आपको सफल होने के लिए प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है और लगातार अच्छा प्रदर्शन करना पड़ता है। भारत में जब अंतरराष्ट्रीय स्तर के ज्यादा से ज्यादा टूर्नामेंट होंगे तो इस खेल को बढ़ावा मिलेगा। किक्रेट में देखिए कितने घरेलू टूर्नामेंट होते हैं। अपने घर में खेलने का अलग ही फायदा होता है। एक पेशेवर खिलाड़ी को साल में 25 से 30 सप्ताह तक यात्रा करनी पड़ती है और यह सबके लिए संभव नहीं है।
-सानिया मिर्जा की उपलब्धियों को देखकर क्या आपमें उनको लेकर कभी द्वेष की भावना जगी?
–नहीं, बिलकुल नहीं। सानिया सिर्फ मेरे लिए ही नहीं, बल्कि देश की सभी महिला खिलाडि़यों के लिए प्रेरणा रही हैं। द्वेष की भावना का तो सवाल ही नहीं उठता। वह जिस समय में खेल रही थीं, उस समय उन्हें अलग तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा होगा। इसी तरह मेरी अलग चुनौतियां रही हैं। सानिया जब शीर्ष पर थीं तब मेरा भी सपना था कि मैं उनकी तरह भारत की नंबर एक खिलाड़ी बनूं और आज वह सिंगल्स और डबल्स दोनों में पूरा हो गया है।
-हाल ही में रूस को डोपिंग की वजह से चार साल के लिए निलंबित कर दिया गया। एक खिलाड़ी के लिए डोपिंग के डंक से खुद को बचाने के लिए कितना सर्तक रहने की जरूरत है?
–देखिए, खिलाड़ी के लिए सतर्कता तो जरूरी है। पूरे साल कई सारे टूर्नामेंटों के लिए खिलाडि़यों को यात्राएं करनी पड़ती हैं। ऐसे में जब भी हम कभी बीमार हो जाते हैं तो उस टूर्नामेंट के डॉक्टर द्वारा निर्देशित दवाई का ही प्रयोग करना चाहिए। जब तक मैं किसी दवाई को लेकर स्पष्ट नहीं होती हूं, उसे नहीं लेती।
-टोक्यो ओलंपिक को लेकर कैसी तैयारियां चल रही हैं?
–ओलंपिक के लिए पिछले दो-ढाई साल से मैं तैयारियां कर रही हूं। 2018 में हुआ एशियन गेम्स भी उसी तैयारी का हिस्सा था। वहां पदक जीतना मेरे लिए आत्मविश्वास बढ़ाने वाला रहा। मैंने वहां एशिया के शीर्ष खिलाडि़यों का मुकाबला किया और कांस्य पदक जीता था जिसने मुझे ओलंपिक के लिए आशा की किरण दिखाई है। ओलंपिक में देश के लिए पदक जीतना मेरा सपना है।
-देश के खेल बहुल राज्यों में गुजरात का नाम शुमार नहीं किया जाता है। एक गुजराती होने के नाते आपके हिसाब से इसकी मुख्य वजह क्या रही हैं?
–ऐसा नहीं है। पहले हालात कुछ और थे, लेकिन वर्तमान में हालात बदल चुके हैं। मौजूदा समय में हर सप्ताह गुजरात के खिलाडि़यों के नतीजे देखने-सुनने को मिल रहे हैं। पिछले एशियन गेम्स में गुजरात के चार खिलाडि़यों ने पदक जीते थे।
-आपकी पसंदीदा खिलाड़ी कौन और क्यों हैं?
–अमेरिका की दिग्गज टेनिस खिलाड़ी सेरेना विलियम्स मेरी सबसे पसंदीदा खिलाड़ी हैं। उन्होंने बेशक आपार सफलताएं हासिल की हों, लेकिन उन्हें भी हर समय किसी ना किसी चुनौती का सामना करना पड़ा है। उन्होंने हर मुश्किल से निकलकर हमेशा नतीजा दिया है और मुझे उनकी यही चीज सबसे ज्यादा प्रभावित करती है।