कानपुर। प्रसिद्ध राधाकृष्ण मंदिरों में शुमार शहर का जेके मंदिर अपने 60वें पड़ाव पर पहुंच गया है। यह वर्ष मंदिर की हीरक जयंती के रूप मनाया जा रहा है। यह मंदिर विशेष आस्था का केंद्र होने के साथ शहर के पर्यटन का भी विशेष हिस्सा है। रोजाना इस मंदिर में हजारों की भीड़ रहती है। दर्शन-पूजन के साथ लोगों को इसकी भव्यता लुभाती है। घूमने के साथ यहां नव जोड़ों के परिवार रिश्ते तय करने के लिए भी आते हैं। इस भव्य मंदिर से जुड़ी कुछ रोचक बातें हैं, जो बहुत कम ही लोग जानते हैं।
कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण 1960 में शुरू हुआ था और निर्माण कार्य आज भी जारी है। हालांकि मूर्ति स्थापना के बाद दर्शन के लिए मंदिर तभी खोल दिया गया था। गोलोकवासी सेठ कमलापति सिंहानिया की पत्नी रामप्यारी देवी ने मंदिर बनवाना शुरू किया था। सफेद संगमरमर से बने मंदिर में लगे झूमर और पत्थर पर तराशी गई कलाकृतियां इसके वैभवशाली इतिहास को दर्शाती हैं। राधाकृष्ण जी महाराज के साथ नर्मदेश्वर महाराज, भगवान अद्र्धनारीश्वर, लक्ष्मी नारायण व हनुमान जी की प्रतिभाएं स्थापित हैं। शहर में इस धरोहर को देखने के लिए प्रतिदिन सैकड़ों भक्त आते हैं और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
बताया जाता है कि मिर्जापुर से आए सिंघानिया घराने ने शहर में कारोबार शुरू किया और खूब तरक्की की। कुछ ही दिनों में जेके समूह बन गया। इसी दौरान जेके समूह ने जेके मंदिर का निर्माण शुरू कराया। ऐसा बताया जाता है कि निर्माण के समय आए साधु ने कहा था कि यदि मंदिर में निर्माण कार्य जारी रहेगा तो सिंघानिया घराना दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करेगा। जिस दिन मंदिर में निर्माण बंद हो जाएगा उसी दिन से तरक्की भी रुक जाएगी। शायद इसी वजह से मंदिर में पिछले साठ वर्षों से राजमिस्त्री कुछ न कुछ काम करते ही रहते हैं। दिन में राजमिस्त्री ने चाहे एक ईंट की ही क्यों न जुड़ाई की हो लेकिन आज तक कभी निर्माण कार्य बंद नहीं हुआ है।
सुख-समृद्धि के लिए वास्तु को अहम माना जाता है। सही वास्तु से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है, जिसका एहसास आपको जेके मंदिर में हो सकता है। मंदिर घूमकर दिशाओं और पंच तत्वों के सही संयोजन को देखा जा सकता है। मंदिर का निर्माण पंचतत्व का सही क्रम देखने को मिलता है। मुख्य गेट से राधाकृष्ण की प्रतिमा साफ दिखाई देती है, जो पृथ्वी तत्व माना जाता है। इसके बाद जल तत्व का आभास प्रवेश करते ही शानदार फव्वारा कराता है। मंदिर की सीढिय़ों पर चढ़ते ही द्वार पर यज्ञ स्थान अग्नि तत्व दर्शाता है। मंदिर के अंदर बड़ा हॉल वायु तत्व का एहसास कराता है तो ऊपर विशाल गुंबद यानि आकाश तत्व है। सभी पंच तत्वों का सही क्रम में संयोजन किया गया है। मंदिर के पांच शिखर हैं, इसमें सबसे ऊंचे शिखर के नीचे राधाकृष्णजी विराजमान हैं।