सनातन परंपरा को मानने वाले हाथ में लाल रंग का कलावा पहनते हैं। कलावा को मौली भी कहते हैं। दरअसल, पूजा के दौरान हाथों में लाल या पीले रंग का कलावा बांधा जाता है। इसके अलावा किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत करते समय भी लाल रंग का धागा बांधा जाता है। या फिर नई वस्तु खरीदने पर हम उसे कलावा बांधा जाता है। आइए जानते हैं शास्त्रों में इसका क्या महत्व है और इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण क्या है।
कलावा कच्चे सूत के धागे से बना होता है। मौली लाल रंग, पीले रंग, या दो रंगों या पांच रंगों की होती है। शास्त्रों के अनुसार कलावा बांधने की परंपरा की शुरुआत देवी लक्ष्मी और राजा बलि ने की थी। कलावा को रक्षा सूत्र भी कहा जाता है, माना जाता है कि कलाई पर इसे बांधने से जीवन पर आने वाले संकट से रक्षा होती है। इसका कारण यह है कि कलावा बांधने से ब्रह्मा, विष्णु और महेश त्रिदेव की कृपा प्राप्त होती है। धार्मिक महत्व रखने के साथ साथ कलावा बांधना वैज्ञानिक तौर पर भी काफी लाभप्रद है।
यह स्वास्थ्य के लिए भी काफी फायदेमंद है। शरीर विज्ञान के अनुसार शरीर के कई प्रमुख अंगों तक पहुंचने वाली नसें कलाई से होकर गुजरती है। कलाई पर कलावा बांधने से इन नसों की क्रिया नियंत्रित रहती है। इससे त्रिदोष यानी वात, पित्त और कफ का सामंजस्य बना रहता है। शरीर की संरचना का प्रमुख नियंत्रण कलाई में होता है। इसका मतलब है कि कलाई में मौली बांधने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है। माना जाता है कि कलावा बांधने से रक्तचाप, हृदय रोग, मधुमेह और लकवा जैसे गंभीर रोगों से काफी हद तक बचाव होता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कलाई में लाल रंग का कलावा पहनने से कुंडली में मंगल ग्रह मजबूत होता है। दरअसल ज्योतिष में मंगल ग्रह का शुभ रंग लाल है। वहीं यदि व्यक्ति पीले रंग का कलावा बांधता है तो इससे उनकी कुंडली में गुरु बृहस्पति मजबूत होता है, जिसके कारण व्यक्ति के जीवन में सुख-संपन्नता आती है। कुछ लोग कलाई में काले रंग का धागा भी बांधते हैं जो शनि ग्रह के लिए शुभ होता है।