हिन्दू धर्म में 16 संस्कार किए जाते हैं। इनमें से एक संस्कार केशान्त है। नवजात शिशु का प्रथम मुंडन पहले या तीसरे वर्ष में किया जाता है जिसके बारे में हम आपको पहले बता चुके हैं। यह संस्कार गर्भ के केशमात्र दूर करने के लिए होता है। उसके बाद इस केशान्त संस्कार में भी मुंडन किया जाता है। इस संस्कार को इसलिए किया जाता है जिससे बालक वेदारम्भ तथा क्रिया-कर्मों के लिए अधिकारी बन सके।
केशान्त का अर्थ है बालों का अंत करना होता है। शिक्षा प्राप्ति से पहले यह संस्कार करना प्राचीन काल में बेहद जरूरी होती थी। वहीं, प्राचीन काल में गुरुकुल से शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी यह संस्कार किया जाता था।
पूर्वोक्त विवरण में यह स्पष्ट किया गया है कि केशान्त शब्द से श्मश्रु (दाढ़ी) का ही ग्रहण होता है। अतः श्मश्रु-संस्कार ही केशान्त संस्कार है। इसे गोदान संस्कार भी कहा जाता है। क्योंकि गौ या केश (बालों) को भी कहते हैं और केशों का अन्त भाग अर्थात् समीप स्थित श्मश्रु भाग ही कहलाता है।
‘गावो लोमानि केशा दीयन्ते खण्ड्यन्तेऽस्मिन्निति . व्युत्पत्त्या ‘गोदानं’ नाम ब्राह्मणादीनां षोडशादिषु वर्षेषु कर्तव्यं केशान्ताख्यकोच्यते।’
गौ अर्थात् लोम-केश जिसमें काट दिए जाते हैं। इस व्युत्पत्ति के अनुसार ‘गोदान’ पद यहां ब्राह्मण आदि वर्णों के सोलहवें वर्ष में करने योग्य केशान्त नामक कर्मका वाचक है।’ यह संस्कार केवल उत्तरायण में किया जाता है। तथा प्रायः षोडशवर्ष यानी 16वें वर्ष में होता है।
कब किया जाता है केशांत संस्कार:
यह संस्कार इस पर निर्भर किया जाता है कि कोई जातक गुरुकुल या कहें वेदाध्ययन कब पूरा करता है। इस संस्कार के साथ जातक को ब्रह्मचर्य अवस्था से गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने के लिए प्रेरित किया जाता है। सभी विषयों और वेद-पुराणों में पारंगत होने के बाद समावर्तन संस्कार से पहले जातक के बालों को काटा जाता है और उसे स्नातक की उपाधि दी जाती है।