नई दिल्ली। अमेरिका के हवाई हमले में ईरान के एक टॉप सैन्य अधिकारी के मारे जाने के बाद शुक्रवार को ब्रेंट क्रूड (कच्चे तेल) की कीमत 4.5% बढ़कर 69.23 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई। रुपया भी 42 पैसे गिरकर डेढ़ महीने के निचले स्तर 71.80 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ। कच्चे तेल के दाम बढ़ने और रुपए के गिरने के बाद भारत में पेट्रोल-डीजल के दामों में भी इजाफा हो सकता है। केडिया कमोडिटी के डायरेक्टर अजय केडिया के मुताबिक, अगर ईरान अमेरिका पर जवाबी कार्रवाई करता है तो इस तिमाही में कच्चे तेल की कीमत 75 से 78 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती है। इससे रुपया डॉलर के मुकाबले 75 तक फिसल सकता है। ऐसा होता है तो पेट्रोल के दाम एक बार फिर 90 रुपए प्रति लीटर पहुंच सकते हैं।
एयरपोर्ट पर गुरुवार देर रात अमेरिकी ड्रोन्स ने रॉकेट से हमला कर दिया। इसमें ईरान की इलीट कुद्स सेना के प्रमुख जनरल कासिम सुलेमानी मारे गए। ईरान-अमेरिका में तनाव बढ़ा तो दुनियाभर में तेल महंगा होगा क्योंकि दोनों ही देश प्रमुख तेल निर्यातक हैं। अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से वर्तमान में ईरान का तेल निर्यात बहुत कम हो चुका है। तनाव बढ़ने की स्थिति में यह और कम हो सकता है। मिडिल ईस्ट के अन्य तेल उत्पादक देशों की सप्लाई पर भी इससे फर्क पड़ सकता है क्योंकि ये देश जिस रूट से तेल की सप्लाई करते हैं वह रूट भी ईरान की समुद्री सीमा से गुजरता है। तनाव बढ़ने की स्थिति में ईरान यह रूट बंद कर सकता है। इन आशंकाओं के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम बढ़े और डॉलर मजबूत हुआ।
देश प्रमुख चार शहरों में फिलहाल पेट्रोल के दाम 75 से 81 रुपए प्रति लीटर के बीच हैं। दिल्ली में पेट्रोल 75.45 और मुंबई में 81.04 प्रति लीटर है। भोपाल में यह 83 रुपए के ऊपर है। अगर अमेरिका-ईरान के बीच तनाव बढ़ा और तेल की सप्लाई कम हुई तो जनवरी से मार्च के बीच कच्चे तेल की कीमत 78 डॉलर तक पहुंच सकती है। कच्चे तेल की कीमत बढ़ने से रुपए में गिरावट आएगी। इन दोनों वजहों से पेट्रोल के दाम 10 से 12 रुपए प्रति लीटर तक बढ़ सकते हैं। डीजल में भी 10 रुपए तक की बढ़ोतरी हो सकती है।
2015 में हुआ था ईरान परमाणु समझौता, 2018 में अमेरिका इससे अलग हुआ
साल 2015 में ईरान परमाणु समझौता हुआ था। इस समझौते में ईरान के अलावा अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी शामिल थे। जिस वक्त ये समझौता हुआ, उस वक्त अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा थे। इस समझौते में शामिल इन देशों ने ईरान के तेल, व्यापार और बैंकिंग क्षेत्रों पर लगे प्रतिबंधों को हटा दिया था जबकि इसके बदले में ईरान अपनी परमाणु गतिविधियों को सीमित करने के लिए सहमत हो गया। ईरान दुनिया के सबसे बड़े तेल निर्यातकों में से एक है और इन प्रतिबंधों के हटने से ईरान की अर्थव्यवस्था को तेजी मिली। लेकिन, मई 2018 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस समझौते को ‘बेकार’ बताया और इससे अमेरिका को अलग कर लिया। इसके बाद ट्रम्प ने ईरान पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए। अमेरिका ने ईरान पर प्रतिबंध इसलिए लगाए, ताकि उसे नए समझौते के लिए मजबूर किया जा सके। साथ ही, दुनिया के सभी देशों से ईरान से कोई भी सामान निर्यात नहीं करने को कहा। इसके बाद से ही दोनों देशों के बीच तनातनी चल रही है।