जामिया मिल्लिया इस्लामिया की वीसी प्रोफेसर नजमा अख्तर ने विश्वविद्यालय में हुई पुलिस कार्रवाई की निंदा करते हुए पूरे वाकये पर दुःख जताया है। उन्होंने एक वीडियो बयान में कहा, “मेरे छात्रों के साथ हुई बर्बरता की तस्वीरें देखकर मैं बहुत दुखी हूं। पुलिस का कैंपस में बिना इजाजत आना और लाइब्रेरी में घुसकर बेगुनाह बच्चों को मारना अस्वीकार्य है। मैं बच्चों से कहना चाहती हूं कि आप इस मुश्किल घड़ी में अकेले नहीं हैं। मैं आपके साथ हूं। पूरी यूनिवर्सिटी आपके साथ खड़ी है।”
इसके बाद उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भी किया, जिसमें उन्होंने जामिया को बदनाम न करने की अपील की। उन्होंने कहा कि सिर्फ जामिया कहना एक भ्रम फैलाता है। इलाके का नाम भी जामिया है और विश्वविद्यालय का नाम भी जामिया है, ऐसे में अगर इलाके में भी कोई विरोध-प्रदर्शन होता है तो यह समझा जाता है कि यह विश्वविद्यालय की ओर से किया जा रहा है।
कभी अलीगढ़ में हुआ करता था जामिया मिल्लिया
इसके पहले चांसलर हकीम अजमल खान बनाए गए थे, वहीं अल्लामा इकबाल के महात्मा गांधी के प्रस्ताव को अस्वीकार करने के बाद मोहम्मद अली जौहर इसके पहले वाइस चांसलर बनाए गए। इसकी स्थापना के बाद औपनिवेशिक काल में जन्में राजनैतिक संकट में एक वक्त के लिए लगा था कि स्वतंत्रता संघर्ष की आग में जामिया बच नहीं पाएगा लेकिन कई संकटकाल के बाद भी यह विश्वविद्यालय अपना अस्तित्व बचाने में कामयाब रहा।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया में इतिहास पढ़ाने वाले रिजवान कैसर बताते हैं, “साल 1920 में चार बड़ी संस्थाएं खोली गई थीं। जमिया मिल्लिया इस्लामिया, काशी विद्यापीठ, गुजरात विद्यापीठ और बिहार विद्यापीठ।” “जामिया की बुनियाद में राष्ट्रवाद, ज्ञान और स्वायत्त संस्कृति हैं। धीरे-धीरे यह शैक्षिक संस्थान के तौर पर पनपता रहा। जामिया आजादी का पक्षधर रहा है और इसके मूल्यों को लेकर चला है।”
वो बताते हैं कि असहयोग और खिलाफत आंदोलन के वक्त जामिया मिल्लिया इस्लामिया फला फूला लेकिन 1922 में असहयोग और 1924 में खिलाफत आंदोलन के वापस लिए जाने के बाद इसका अस्तित्व खतरे में पड़ गया। आंदोलनों से मिलने वाली वित्तीय सहायता बंद हो गईं। जामिया पर संकट के बादल मंडराने लगे।
गांधी जामिया को हर हाल में चलाना चाहते थे
गांधी जी की इस बात से जामिया से जुड़े लोगों का मनोबल बढ़ा। गांधी जी फंड जुटाने की कोशिशों में जुट गए लेकिन ब्रिटिश काल में कोई भी संस्था इसकी मदद कर खुद के लिए जोखिम नहीं उठाना चाहती थी। अंत में जामिया को दिल्ली लाने वाले लोगों ने मदद जुटाने के लिए दौरा किया और सामूहिक प्रयासों से इसका पतन टल पाया।
पुनरुत्थान की कोशिशें
जामिया मिल्लिया इस्लामिया में इतिहास पढ़ाने वाले रिजवान कैसर बताते हैं, “जामिया पहली ऐसी संस्था है पूरे भारत में जहां टीचर्स ट्रेनिंग का प्रावधान किया गया था और देश भर के अलग-अलग हिस्सों से शिक्षक यहां प्रशिक्षण लेने आते थे।” “उसे ‘उस्तादों का मदरसा’ नाम दिया गया था। जामिया का मास कम्यूनिकेशन सेंटर देश में अव्वल है।”
साल 1935 में जामिया से जुड़े सभी संस्थान और कार्यक्रम दिल्ली के बाहरी इलाके के एक गांव ओखला में स्थानांतरित कर दिया गया। चार साल बाद जामिया मिल्लिया इस्लामिया को एक संस्था के रूप में रजिस्टर किया गया। कारवां बढ़ता गया और इसी बीच देश को आजादी मिली और बंटवारा भी झेलना पड़ा। विभाजन के बाद देश ने दंगे देखे। हर संस्था इससे प्रभावित हुई लेकिन जामिया कमोबेश अछूता रहा।