नई दिल्ली। ग़रारा और शरारा आपने फैशन की दुनिया में ये दो नाम ज़रूर सुने होंगे लेकिन अक्सर लोगों में फर्क समझ नहीं आता है। ये दोनों ही एक तरह के बॉटम वियर हैं, जिन्हें महिलाएं कुर्ती के नीचे पहनती हैं। वैसे देखा जाए तो ये कई तरह से एक दूसरे से मिलते हैं, यही वजह है कि लोगों के बीच इनमें अंतर को लेकर जिज्ञासा रहती है। इसलिए आज हम आपको बता रहे हैं कि इन दोनों के बीच आखिर क्या अंतर है।
शरारा एक पारंपरिक शादी या फिर पार्टी का पहनावा है। ये मुग़लों के दौर में पहने जाने वाला पहनावा है जिसे अवध यानी आज के लखनऊ के इलाके में पहना जाता है। शरारा बिल्कुल लहंगे की तरह दिखता है, बस ये लहंगे से ज़्यादा घेरदार और लंबा होता है। साथ ही ये ‘ए’ शेप का होता है। इसमें नीचे की तरफ खूबसूरत गिरावट के साथ लेस, गोटा या स्टोन की कारीगरी की जाती है। इसे खासतौर पर लम्बी या छोटी कुर्ती के साथ पहना जाता है।
यह पारंपरिक पोषाक बहुत खूबसूरत लगती है और आजकल दोबारा फैशन में आ गई है और खासकर युवाओं को काफी पसंद भी आ रहा है। एक वक्त था जब बॉलीवुड में शरारा आम पहनावा हुआ करता था, खासकर 1960 के दशक में, जब मीना कुमारी, साधना और नंदा जैसी अदाकाराओं ने इस पहनावे को खूब पहना है।
ग़रारा घेरदार पैन्ट्स की तरह होता है। ये एक नबाबी पोषक मानी जाती है, जिसे नवाबों के दौर में महिलाएं पहना करती थीं। ये ढीली मोहरी का पैजामा होता है, जो चौड़ें पैरों वाली पैंट की जोड़ीदार मानी जाती है। इसके घुटने के क्षेत्र में जिसे उर्दू में गोटा के नाम से जाना जाता है, पर अक्सर ज़री-ज़रदोज़ी की कशीदाकारी की जाती है।
इसे बनाने के लिए लगभग 11 से 12 मीटर कपड़े का इस्तेमाल किया जाता है। पुराने समय में ग़रारा बनाने के लिए रेशम के कपड़े का इस्तेमाल किया जाता था। ग़रारा भी लखनऊ का पारंपरिक परिधान माना जाता है। इसे अधिकतर मुस्लिम महिलाएं पहना करती थीं। इसके पर छोटी या लंबी लेंथ की कुर्ती पहनी जाती है।
इसमें भी शरारा की तरह ज़री, सीक्वेन, पत्थर, गोटे और बीड्स का काम होता है। अगर आपकी लंबाई कम है तो आप इसके साथ लंबी कुर्ति पहन सकती हैं।
इन दोनों खूबसूरत पहनावे के बीच के अंतर को समझने के लिए सिर्फ इतना याद रखें कि शरारा स्कर्ट नुमा होता है जो कमर से फिट होते हैं और नीचे से काफी घेरदार। जबकि ग़रारा घुटनों तक फिटिंग का होता है और उसके नीचे घेरदार।