पूरे साल में कुल 12 संक्रान्तियां होती हैं, लेकिन इनमें से चार संक्रांति मेष, कर्क, तुला और मकर संक्रांति बहुत महत्वपूर्ण मानी गईं हैं। पौष मास में सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश मकर संक्रान्ति के रूप में जाना जाता है। सूर्य का मकर रेखा से उत्तरी कर्क रेखा की ओर जाना उत्तरायण तथा कर्क रेखा से दक्षिणी मकर रेखा की ओर जाना दक्षिणायण कहलाता है।
देवताओं के दिन-रात
शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण देवताओं का दिन तथा दक्षिणायण देवताओं की रात होती है। सूर्य जब दक्षिणायन में रहते है तो उस अवधि को देवताओं की रात्रि व उत्तरायण के छ: माह को दिन कहा जाता है। दक्षिणायन को नकारात्मकता और अंधकार का प्रतीक तथा उत्तरायण को सकारात्मकता एवं प्रकाश का प्रतीक माना गया है। भगवान श्री कृष्ण ने भी उत्तरायण का महत्व बताते हुए गीता के आठवें अध्याय में कहा है कि उत्तरायण के 6 मास के शुभ काल में जब भगवान भास्कर देव उत्तरायण होते हैं तो पृथ्वी प्रकाशमय रहती है और इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। इसके विपरीत सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और इस अन्धकार में शरीर का त्याग करने पर पुनः जन्म लेना पड़ता है। मकर संक्रांति के दिन यज्ञ में दिए द्रव्य को ग्रहण करने के लिए देवता धरती पर अवतरित होते हैं एवं इसी मार्ग से पुण्यात्माएं शरीर छोड़कर स्वर्ग आदि लोकों में प्रवेश करती हैं।
शनिजनित दोष होते हैं दूर
इस दिन सूर्यदेव अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, उसमें सूर्य के प्रवेश मात्र से शनि का प्रभाव क्षीण हो जाता है क्योंकि सूर्य के प्रकाश के सामने कोई नहीं रुक सकता। मकर संक्रांति पर सूर्य -शनि की साधना और इनसे सम्बंधित दान करने से सारे शनिजनित दोष दूर हो जाते हैं।
क्या हैं पौराणिक मान्यताएं
शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रान्ति के दिन ही भगवान विष्णु के अंगूठे से निकली देवी गंगाजी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थी और भगीरथ के पूर्वज महाराज सगर के पुत्रों को मुक्ति प्रदान की थी, इसीलिए इस दिन बंगाल में गंगासागर तीर्थ में कपिल मुनि के आश्रम पर एक विशाल मेला लगता है। गंगासागर में स्न्नान करने का बहुत महत्व है। एक अन्य पौराणिक प्रसंग के अनुसार भीष्म पितामह महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा में मकर संक्रान्ति को प्राण त्यागे थे। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था।
स्नान, दान का मिलता है फल
पदम पुराण के अनुसार उत्तरायण या दक्षिणायण आरम्भ होने के दिन जो पुण्य कर्म किया जाता है वह अक्षय होता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करना चाहिए। ऐसा करने से दस हजार गौदान का फल प्राप्त होता है। इस समय किया हुआ तर्पण दान और देव पूजन अक्षय होता है। इस दिन ऊनी कपड़े, कम्बल, तिल और गुड़ से बने व्यंजन व खिचड़ी दान करने से सूर्य नारायण एवं शनि की कृपा प्राप्त होती है। श्री तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है कि ” माघ मास में जब सूर्य मकर राशि में आते हैं तब सब लोग तीर्थों के राजा प्रयाग के पावन संगम तट पर आते हैं देवता, दैत्य ,किन्नर और मनुष्यों के समूह सब आदरपूर्वक त्रिवेणी में स्नान करते हैं ”। वैसे तो प्राणी इस माह में किसी भी तीर्थ, नदी और समुद्र में स्नान कर दान -पुण्य करके कष्टों से मुक्ति पा सकता है लेकिन प्रयागराज संगम में स्नान का फल मोक्ष देने वाला है।