सुप्रीमकोर्ट के 26 मई के फैसले को सरकार एसी कमरों से बाहर निकलकर पढ़े
लखनऊ। नेता प्रतिपक्ष उत्तर प्रदेश रामगोविन्द चौधरी ने कहा है कि केंद्र और राज्य सरकार श्रमिकों को बदहाल स्थिति में ढकेलने और उसे बरकरार रखने के लिए देश से माफी मांगें। उन्होंने कहा कि सरकारें सुप्रीम कोर्ट के 26 मई के फैसले को कुछ पल के लिए एयर कंडीशन कमरों से बाहर निकलकर पढ़ें।
श्री चौधरी ने कहा कि सुप्रीमकोर्ट के इस फैसले से देश के मजबूत पावों में उभरे छालों के दर्द का बोध किसी भी आदमी को हो जाएगा। इसका बोध होने पर निष्ठुर आदमी की भी आंखे डबडबा जाएगी। लेकिन भारत सरकार और राज्य सरकार के प्रधान तथा उनके इन्तजामकार इसे लगातार नजर अंदाज कर रहे हैं।
नेता प्रतिपक्ष रामगोविन्द चौधरी ने कहा कि वर्तमान में अखबार कर्मियों की कलम पर आपातकाल से भी अधिक कड़ा पहरा है। इसके बावजूद फैसले का वह सच प्रकाशित हो गया है। जिसमें न्यायमूर्तियों ने कहा है कि अभी भी प्रवासी मजदूर (मेरे शब्दों में देश के मजदूर) सड़कों, हाइवे, रेलवे स्टेशनों और राज्य की सीमाओं पर घर जाने के लिए बैठे हैं। उनके लिए पर्याप्त परिवहन व्यवस्था नहीं है, न ही उनके खाने रहने का उचित इंतजाम है। न्यायमूर्तियों ने अपने इस फैसले में यह भी कहा है कि इस स्थिति से निपटने के लिए प्रभावी इंतजाम जरूरी है।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि भारत सरकार और राज्य की सरकारों के अचानक, अनियोजित फैसलों और सरकारों में आपस में तालमेल नहीं होने के कारण देश का श्रमिक भयावह दौर से गुजर रहा है। उन्होंने कहा कि देश की बदहाल स्थिति के लिए देश के वह इंतजामकार जिम्मेदार हैं। कोरोना और इससे उत्पन्न होने वाली स्थिति की गम्भीरता समझते हुए ट्रम्प का स्वागत और शिवराज चौहान की ताजपोशी की व्यवस्था छोड़कर पहले लोगों शेटल हो जाने की सूचना दिया होता या दिलवाया होता, श्रमिकों को शेटल होने के लिए कम से कम एक सप्ताह का समय दिया होता या दिलवाया होता और अपने प्रचार साधनों से इसका प्रचार करवाने के बाद लाॅक डाउन की घोषणा का प्रेसनोट पढ़वाया होता तो यह दुखद स्थिति नहीं उत्पन्न होती।
श्री चौधरी ने कहा है कि इंतजामकारों के इस रवैये से दुनियां के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के पथ पर अंधकार छाया हुआ है। ऐसी स्थिति में सुप्रीमकोर्ट के इस फैसले में लोकतांत्रिक लोगों को रोशनी दिख रही है। उन्होंने देश और राज्य सरकार के प्रधानों से आग्रह किया है कि वह इस सच्चाई का बोध करें और केवल अफसरों का लिखा बयान पढने की जगह कुछ खुद भी करने और सोचने की कोशिश करें।