नेटफ्लिक्स, अमेजन जैसे OTT प्लेटफॉर्म और ऑनलाइन न्यूज, करंट अफेयर्स और ऑडियो-विजुअल कंटेंट देने वाले डिजिटल प्लेटफॉर्म अब सरकार की निगरानी के दायरे में आएंगे। केंद्र सरकार ने बुधवार नोटिफिकेशन जारी कर दिया। इसमें कहा गया कि OTT प्लेटफॉर्म समेत ऑनलाइन न्यूज पोर्टल भी अब इन्फर्मेशन एंड ब्रॉडकास्ट मिनिस्ट्री के दायरे में आएंगे।
मौजूदा व्यवस्था क्या है?
अभी प्रिंट मीडिया पर प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और न्यूज चैनल पर न्यूज ब्रॉडकास्टर एसोसिएशन नजर रखती है। एडवर्टाइजिंग और फिल्मों पर एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड काउंसिल ऑफ इंडिया और सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन नजर रखता है।
नए फैसले का असर क्या होगा?
नए फैसले से बिना किसी सबूत और झूठी खबरें दे रहे ऑनलाइन पोर्टल पर लगाम लगेगी। इससे कानून-व्यवस्था और विश्वसनीयता भी बढ़ेगी, क्योंकि कई मामलों में देश में ऑनलाइन पोर्टल के जरिए दिए गए कंटेंट से भी अपराधों या दंगों को बढ़ावा मिलता है। हालांकि, तमाम राज्यों में साइबर ब्रांच इस पर नजर रखती है, पर इसके लिए कोई रेगुलेशन न होने से कई बार लोग बच निकलते हैं।
SC तक मामला कैसे पहुंचा?
सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी, इसमें OTT प्लेटफॉर्म्स के नियंत्रण का मुद्दा उठाया गया था। कहा गया था कि एक स्वायत्त संस्था इनकी निगरानी करे। अक्टूबर में ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र समेत आईबी मिनिस्ट्री और मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया को भी इस संबंध में नोटिस भेजा था।
OTT प्लेटफॉर्म में केवल न्यूज पोर्टल ही नहीं, बल्कि वीडियो कंटेंट स्ट्रीम करने वाले नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम वीडियो और हॉट स्टार जैसे प्लेटफॉर्म भी शामिल हैं। इन्हें इंटरनेट के जरिए एक्सेस किया जाता है।
केंद्र का इस पर क्या स्टैंड है?
दरअसल, डिजिटल मीडिया के रेगुलेशन की बात केंद्र ने ही उठाई थी। आईबी मिनिस्ट्री ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि डिजिटल मीडिया में हेट स्पीच जैसी चीजों के रेगुलेशन के लिए एक कमेटी का गठन किया जाना चाहिए, जो इसके लिए गाइडलाइन तय करे।
हालांकि, 2019 में आईबी मिनिस्टर प्रकाश जावड़ेकर ने कहा था कि केंद्र ऐसा कोई कदम नहीं उठाएगा, जो मीडिया की आजादी छीन ले, लेकिन OTT प्लेटफॉर्म के लिए एक रेगुलेशन मैकेनिज्म होना चाहिए, जैसा कि प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिए होता है।