नोएडा। लंबे इंतजार के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने दिल्ली से सटे जिला गौतमबुद्धनगर और प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पुलिस कमिश्नरी व्यवस्था को मंजूरी प्रदान कर दी है। सोमवार सुबह यूपी कैबिनेट से प्रस्ताव पर मुहर लगते ही मुख्यमंत्री ने प्रदेश पुलिस के मुखिया डीजीपी ओपी सिंह के साथ प्रेसवार्ता कर इसकी जानकारी दी। माना जाता है कि पुलिस कमिश्नर प्रणाली से कानून-व्यवस्था मजबूत होती है। इससे बेलगाम अपराधियों पर शिकंजा कसने में मदद मिलती है। हालांकि लोगों के मन में पुलिस कमिश्नर सिस्टम को लेकर कई तरह के सवाल भी हैं। जैसे पुलिस कमिश्नर प्रणाली क्या है और कैसे इसके आने से कानून-व्यवस्था मजबूत होगी? आइये जानते हैं पुलिस कमिश्नर सिस्टम से जुड़े हर सवाल का सही जवाब।
कमिश्नर प्रणाली में पुलिस को तमाम प्रशासनिक अधिकार भी मिल जाते हैं। अब तक गौतमबुद्धनर में जो सामान्य पुलिसिंग व्यवस्था थी, उसमें जिलाधिकारी (DM) के पास पुलिस को नियंत्रण करने का अधिकार होता है। मतलब सामान्य पुलिस व्यवस्था में जिले के अंदर भी किसी पुलिस अधिकारी या कर्मचारी का तबादला करने के लिए एसएसपी को जिलाधिकारी की मंजूरी लेनी होती है। इसके अलावा पुलिस से जुड़े कोर्ट संबंधी मामलों के प्रभारी भी जिलाधिकारी ही होते हैं। इसके अलावा क्षेत्र में धारा 141 या कर्फ्यू लागू करने का अधिकार भी प्रशासनिक अधिकारियों के पास होता है। इसी तरह सामान्य पुलिसिंग के अंतर्गत दंगे जैसी स्थिति में पुलिस को लाठी चार्ज या फायरिंग के लिए भी प्रशासनिक अधिकारी से अनुमति लेनी होती है। शांति भंग जैसी धाराओं में आरोपी को जेल भेजना है या जमानत देनी है, इसका फैसला प्रशासनिक अधिकारी करते हैं। दरअसल, दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) जिलाधिकारी (DM) को कानून-व्यवस्था बरकरार रखने के लिए कई शक्तियां प्रदान करता है। आम तौर पर CRPC के अधिकार जिलाधिकारी अन्य प्रशासनिक अधिकारियों (PCS) को प्रदान कर देते हैं। पुलिस की मासिक क्राइम बैठक भी जिलाधिकारी की अध्यक्षता में होती है। पुलिस कमिश्नर प्रणाली में CRPC के सारे अधिकार पुलिस अधिकारी को मिल जाते हैं। ऐसे में पुलिस त्वरित कार्रवाई करने में सक्षम होती है। नतीजतन कानून-व्यवस्था सुदृढ़ होती है।