लेबर लाॅ में बदलाव कर घिरी योगी सरकार
लखनऊ। लेबर लाॅ में किए गए बदलाव को लेकर जहां ट्रेड यूनियनों ने तीखा विरोध किया है, वहीं विपक्ष भी उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर हमलावर है। बसपा सुप्रीमो मायावती के बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव व प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने भी सरकार के इस कदम को मजदूर व गरीब विरोधी बताया है।
रविवार को एक ट्वीट कर अखिलेश यादव ने सरकार के इस निर्णय की आलोचना की है। अखिलेश ने लिखा, मजदूर विरोधी भाजपा सरकार ने श्रमिक कानून को तीन साल के लिए निलंबित कर दिया है। सरकार तर्क दे रही है कि उसके इस कदम से निवेश को बढ़ावा मिलेगा, जबकि इससे मजदूरों का शोषण बढ़ेगा। मजदूरों व श्रमिकों का असंतोष पूरे औद्योगिक वातावरण को अशांत कर देगा। पूर्व मुख्यमंत्री ने लिखा, सच तो यह है कि ‘औद्योगिक-शांति’ निवेश की सबसे आकर्षक शर्त होती है।
वहीं प्रसपा प्रमुख शिवपाल सिंह यादव ने ट्वीट कर कहा, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अध्यादेश के माध्यम से श्रम कानूनों में किए गए अलोकतांत्रिक व अमानवीय बदलावों को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए। मजदूरों के अधिकारों की रक्षा करने वाले ‘श्रम-कानून’ के अधिकांश प्रावधानों को 3 साल के लिए स्थगित कर दिया गया है। क्या आपदा की कीमत केवल मजदूर चुकायेंगे?
कंपनियों को मिला मजदूरों के शोषण का लाइसेंस
बता दें कि उत्तर प्रदेश सहित देश के तीन राज्यों ने लेबर लाॅ (श्रम कानून) में बदलाव कर निवेशकों व कंपनियों को बड़ी छूट दे दी है। अब निजी क्षेत्र की तमाम कंपनियों को सप्ताह में 48 के बजाय 72 घण्टे काम कराने का एक तरह से लाइसेंस दे दिया है। जिसके बाद मजदूरों व नौकरीपेशा लोगों से कंपनियों में 8 के बजाय 12 घण्टे काम कराया जा सकता है। एक अध्यादेश जारी कर सरकार ने कई अन्य रियायतें भी दी हैं।
जैसे कि काम की जगह पर साफ-सफाई, मजदूरों के अस्वस्थ होने की स्थिति में इलाज आदि संबंधी कानूनी बाध्यताओं में सरकार ने कंपनियों को बड़ी छूट दे दी है। जिसका तीखा विरोध भी हो रहा है। सरकार का तर्क है कि इस छूट से लाॅकडाउन के बाद ठप पड़ी अर्थव्यवस्था को फिर से बेहतर करने में मदद मिलेगी। निवेश को बढ़ावा मिलेगा और खत्म होती नौकरियों को भी संबल मिलेगा।