नए साल का स्वागत है, इस आशा के साथ कि समाज में सद्भावना और समृद्धि बढ़े, हर हाथ को रोजगार मिले, हर व्यक्ति शिक्षित व स्वस्थ हो और देश अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचे। हमारे देश में इतनी प्रतिभा और संभावना है कि हम इसे न सिर्फ हासिल करें बल्कि तय समय सीमा में हासिल करें। पर इसकी एक बड़ी शर्त है कि हम हर हाल में एकजुट हों, खुद से पहले देश की सोचें और खासकर राजनीति को अपनी व्यक्तिगत सोच पर हावी न होने दें।
2019 में बड़े फैसले हुए, बड़ी पहल हुई
मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि बीते हुए साल में बड़ी-बड़ी घटनाएं हुईं, बड़े फैसले हुए, बड़ी पहल हुई और हां, जनता ने दशकों बाद अभूतपूर्व जनादेश देकर यह जताया कि सरकार उनकी अपेक्षाओं के अनुसार आगे बढ़ रही है, लेकिन कुछ मुद्दों को लेकर राजनीतिक दलों ने ऐसा माहौल बनाया, जिसमें ऐसा महसूस कराने की कोशिश हुई कि भारत आगे नहीं बढ़ रहा है, बल्कि पीछे की ओर खिसक रहा है। यह राजनीतिक छाया है, जिससे हमें अपनी सोच को बचाना होगा।
2019 बालाकोट हमले के लिए याद किया जाएगा
2019 में राजनीतिक तौर पर सबसे बड़ी घटना लोकसभा चुनाव नतीजा ही था, जिसने यह स्थापित किया कि सरकारों के खिलाफ केवल सत्ताविरोधी लहर ही नहीं सत्ता के पक्ष में भी लहर होती है। यह तब परिलक्षित होता है, जब सरकारें महात्मा गांधी की सोच के अनुसार अंतिम व्यक्ति तक भी पहुंचती है और इसका भी ध्यान रखती है कि निम्न से उच्च वर्ग तक के विकास का संतुलन बना रहे। 2014-19 के बीच नरेंद्र मोदी सरकार ने जो कुछ किया था, जनता ने उसका रिपोर्ट दिया। हालांकि मोदी सरकार के आलोचकों ने इसका पूरा श्रेय केवल बालाकोट हमले को दिया। जो भी हो बालाकोट ने यह जरूर तय कर दिया कि भारत सोते रहने वाला देश नहीं है। भारत धैर्य रखना जानता है, लेकिन कायर नहीं है और इसीलिए आतंकवाद के खिलाफ बड़ी लड़ाई लड़ सकता है। यह भारत के इतिहास को बदलने वाली घटना थी। 2019 इसके लिए याद किया जाता रहेगा।
2019 याद किया जाएगा भारी जनादेश के साथ दोबारा सत्ता में लौटी मोदी सरकार
लेकिन भारी जनादेश के साथ दोबारा सत्ता में लौटी मोदी सरकार ने मानो यह तय कर लिया था कि 2019 बालाकोट के जरिए मानसिकता को बदलने वाले साल के लिए नहीं बल्कि तीन तलाक पर प्रतिबंध के जरिए मुस्लिम समाज की रूढि़, अनुच्छेद 370 के जरिए जम्मू-कश्मीर में वर्षों के अलगाव को मिटाने, नागरिकता संशोधन कानून के जरिए शरणार्थियों की पीड़ा को दूर करने के साल के रूप में याद किया जाएगा।
राम मंदिर पर फैसला साल की बड़ी घटना
सरकार गठन के बाद तत्काल जिस गति से सरकार इन मुद्दों पर आगे बढ़ी वह इसी की ओर इशारा करती है। यह और बात है कि विपक्ष ने इन मुद्दों को नकारात्मक तरीके से देखा और यही कारण है कि साल के अंतिम दिनों में कुछ स्थानों पर हिंसा फैली। राजनीतिक दलों की गलत सोच का इससे बड़ा क्या उदाहरण हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट से वर्षों से लंबित राम मंदिर पर फैसला देकर एक मुद्दे अच्छी तरह सुलझाया तो उस पर भी उंगली उठाई गई। यही कारण है कि हमें नए साल में खुद पर विश्वास करना, खुद की सोच को विकसित करने पर जोर देना होगा।